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१.३
पठमचरित
पहुरक्खर विणयाला लिन्तु । श्राणन्दु सोक्तु सोहग्गू दिन्तु ॥७॥ पल के पहिच कर लेवि देवि । विहसन्त-रमन्तई थियो वे पि ॥८॥
पत्ता स ई मु यहि परोप्यरु लिम्ता सरबसु आदिमा दिनताई। णीसन्धि-गुणेण ण णाया. दोण्णि वि एवं पिव जाया ॥१॥
ह्य रामएवचरिए णायासिय-सयम्भुएच-कए । 'पद णम्ज णा वि वा हो' भट्ठारहम इमं पम्वं ॥
[१९. एगुणवीसमो संधि ]
पशिष्टम-पहरें पहाण भावच्छिय पिय पयसन्तएँण । 'तं मरुसेग्जहि मिगणयणि ज मई अचहस्थिय मन्तएण' ॥
[१] जन्तएण आवषिमय जं परमेसरी ।
थिय दिसण्ण हेटामुह अन्जणसुन्दरी ||३|| कर मउलिकरेप्पिणु विष्णवह। 'रयसलहँ गम्भु जइ संमवइ ।।२।। तो उत्तर काई देमि जगहों। णवि सुज्झइ एउ मझु मणहो' ॥३॥ चित्तेण तेण सुपरिहवें वि। कणु अहिणाणु समल्ल वि ॥१॥ मउ परवइ सहुँ मित्तेण वहि। भाणसस- दूमावासु बहिं ।।५।। गुरुहार हुआ एत्तहे वि सह । कोकाव वि पमणह केडमह ।।६।। 'एड काई कम्मु पहूँ भायरिउ णिम्मलु महिन्द-कुल्लु धूसरिङ ॥७॥