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________________ एणवीसमो संधि ३.६ रोती है कि कुमार प्रवेश करता है। मधुर अक्षर और विनयालाप करते हुए, आनन्द-सुख और सौभाग्य देते हुए, एक दूसरेका हाथ लेते-देते हुए वे पलंगपर चढ़े। दोनों हँसने और रमण करने लगे ॥१-८॥ - पत्ता-अपनी बाँहों में एक दूसरेको लेते हुए सहर्ष आलिंगन देते हुए दोनों एक हो गये और उन्हें नियोगही वान झात नहीं रही ।।५|| इस प्रकार धनंजयके आश्रित स्वयम्भदेव कृत 'पवनंजयविवाह' नामका अठारहवा यह पर्व समाप्त हुआ। उनीसवीं सन्धि अन्तिम पहर में प्रवास करते हुए पवनंजयने प्रियासे कहा, "हे मृगनयनी, जो मैंने भ्रान्तिके कारण तुम्हारा अनादर किया, उसे क्षमा करो।" __ [१] जाते हुए प्रियने जब परमेश्वरीसे यह पूछा तो अंजनासुन्दरोने दुःखी होकर अपना मुँह नीचा कर लिया। वह हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हैं, "रजस्वला होनेसे यदि गर्भ रह जाता है, तो लोगोंको में क्या उत्तर दूंगी ! यह बात मेरी समझमें नहीं आ रही है ?" तब उसके चित्तके विश्वास और पहचान के लिए कंगन देकर कुमार पवनंजय अपने मित्रके साथ वहाँ गया, जहाँ मानसरोवरमें उसका तम्बू था। यहाँ यह सती गर्भवती हो गयी। तब केतुमती उसे बुलाकर कहती है, "यह तूने किस कर्मका आचरण किया है, निर्मल
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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