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________________ भट्ठारहसो संधि . घत्ता-यह सुनकर, आँसू पोछते हुए और लकीर खींचते हुए उसने कहा, "तुम्हारे रहते हुए ही मेरा जीव है, तुम्हारे जानेपर वह भी साथ चला जायेगा" ||९|| [११] यह वचन कुमारको असिपहारकी तरह लगा। वह उसकी उपेक्षा करके चला गया। मानस सरोवरपर उसने अपना डेरा डाला। तबतक सूर्यास्त हो गया। कमल मुकुलित दिखाई देने लगे, प्रिय के वियोगमें मधुकरियाँ मुखरित हो उठी, चकवी भी बिना चकवेके, कामदेयके द्वारा पीड़ित दिखाई दी, चोंचको पीटती और पंखोंको नष्ट करती हुई, विरहातुर वह चिल्लाती और दौड़ती हुई। उसे देखकर कुमारको करुणभाव उत्पन्न हो गया । ( वह सोचता है )"मेरे समान कोई दूसरा पापी नहीं है, मैंने अपनी पत्नीकी ओर देखा तक नहीं, वह कामकी ज्यालाओंमें जल रही है। जबतक लौटकर मैं उसका सम्मान नहीं करता, तबतक वरुणके युद्ध में मैं नहीं लगा" ||१८|| धत्ता--अपने सहायकसे उसने अपना सद्भाव बताया। प्रहसितने भी कहा, "यह अच्छी बात है।" आकाश में उड़कर दोनों गये, मानो लक्ष्मीका अभिषेक करनेके लिए दो महागज जा रहे हो ॥२॥ [१२] निमिष मात्रमें वे अंजनाके भवनमें जा पहुँचे । पवनकुमार कहीं छिपकर बैठ गया । प्रहसित भीतर घुसा और प्रणाम करते हुए, उसे आगमन बताया, "हे देवी, आज तुम्हारा मनोरथ परिपूर्ण हैं, मैं पवनकुमारको लेकर आया हूँ।" यह सुनकर घसन्तमाला, जिसका स्तनोंके बीचका हिस्सा आँसुओंसे गीला हो गया है, बोली, "यदि अंजनाका इतना बड़ा पुण्य है. तो क्या सोचते हो" ! ( यह कहकर ) वह जबतक
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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