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________________ भट्ठारहमो संघि २९५ जलाई-चन्दन कपूर-कमलदलोंकी मृदु सेज, दक्षिणपवन और शीतल जल, उसके लिए केवल आगको चिनगारियाँ थी । अनंग उसके अंग-प्रत्यंगको जलाता है, उसी प्रकार, जिस प्रकार दुष्टोंका संग सज्जनोंके हृदयको । निश्वास लेता, साँस छोड़ता, (अज्ञानसे) काँपता, पंचम स्वर में चिल्लाना, लत्तरीय आभरण और प्रसाधन सभी उसके अंगोंको असुहावने लगते ॥१-८11 पत्ता-पसीना पसीना होने लगता, शरीर टूटता। उसकी अन्यमन चेष्टा और मुँह देखकर प्रहसित बोला, “कुमार, तुम दुर्बल क्यों हो गये || ६] विरहाग्निसे जिसका मुंहकमल दग्ध हो गया है, ऐसे पवनंजयने कहा, "हे नेत्रोंको आनन्द देनेवाले सुन्दरचित्त मित्र, मेरे लिए तीसरा भी दिन असच है, यदि मैं आज प्रियतमा का मुँह नहीं देखता तो कल मेरा मरण निश्चित है।” यह सुनकर ग्रहसित, जिसका मुख कमलके समान है, बोला; "नागराजके सिरका भी रत्न किस गिनतीमें है ? फिर यह कितनी-सी बात है कि जिसके लिए तुम इतने दुखी हो। क्या पवनका कहीं भी प्रवेश असम्भव है ?" इस प्रकार तपस्वीका रूप बनाकर रातमें दोनों गये। उन्होंने जालोके गवाक्षमें बालाको बैठे हुए देखा, मानो कामदेवके बाण धनुष और तूणीरकी माला हो। जिसके वियोग में कामदेव ही स्वयं मर रहा हो, उसके रूपका वर्णन कौन कर सकता है?॥१-८३ पत्ता-उस वधूको देखकर प्रहसितको परितोष हुआ और उसने वरकी प्रशंसा की, "तुम्हारा जीवन सफल है, जिसके हाथ अनन्तश्रीवाली यह स्त्री हाथ लगेगी" ||९|| [७] इसके अनन्तर, अष्टमीके चन्द्रके समान है भाल जिसका ऐसी अंजना सुन्दरीका मुख देखकर, वसन्तमाला कहती है, "दे आदरणीये, तुम्हारा मनुष्यजन्म सफल है जिसे
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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