________________
२९४
दाहिण मारउ सीयल जला हूँ । डिहह हुई अञ्जु । णीससइ ससद् चैवइ तमेण । उच्हण आहरण-पसाद्दणाइँ ।
पउमचरिउ
तहाँ फुकिङ्ग केवलाई ||५|| सज्जन- हिययाई व पिसुण-सङ्ग ॥ ॥ घाडावर धाहा पञ्चमेण ॥७॥ सब्बई अङ्गर्हो भसुहावणाइँ ||८||
घत्ता
पासेउ बलगाइ सइ तणु
तं इङ्गिङ पेक्यवि मण्ण मणु ।
पमणिड पहसिऍण णिएवि मुहु 'किं दुम्बकिय कुमार तुदु' ॥९॥
[*]
पहसित पतु पचण
विरहविंग-दड्ड-मुह-कण । 'भो यणाणन्दण वाह-चित्त । जइ अज्जु ण लक्षित पियहँ ध्यणु संणिसुवि दुबह पहसिपुण । 'फणि- सिर- रयणेण वि णाहि गष्णु किं पण कवणुवि दुप्पवेसु' । थिय जान गवाएँ दिट्ठ वाक । मारो षि मरइ विरहेण जाहें ।
॥१॥ उ विसहउँ तइयउ दिवसु मिश्र ॥ २ । तो कल्लएँ महु नित्तुरूउ मरणु' ॥३ कमलेण च वयणें पहसिपुण ॥४॥ पूँउ कारण केसिड जे विषण्णु ॥ ५ ॥ गय वेणि विहिं सम्पवेसु ॥ ६॥ णं भयण वाण धणु-सोण-मारू ॥०॥ को वर्णेवि सक्कड़ रूबु ताई ॥ ८ ॥
।
धत्ता
तं बहु पेक्खचि परितोसिपूण वरस्तु पसिउ पहसिएण । 'तं जीविउ सहलु भणन्त सिय असु करें लग्गोसह ह दिय ॥२॥
[]
प्रथन्तरें सट्टमी - घन्द-भाड
सुड्ड जोऍचि चव व समाळ ॥१७
'लहकर तर माणुस जम्मु माएँ । भन्सार पक्ष रुद्ध जाएँ' ॥२॥