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________________ २२३ पउमरिंड तं गिसुर्णेवि दुम्मुह दुटु-वेस। सिरु विहुणे वि भणइ वि मीसकस ॥३॥ 'मोदामणिपहु पहु परिहरेवि। थि परशु कवणु मुणु संभरेवि ।। जं अन्तर गोपथ-सायराहुँ । जं जोइनणहं दिवायराहुँ ॥५॥ जं अन्तर केसरि-कुञ्जराह । जं कुसुमाउह-तिस्थकराह ॥॥ जं अन्तर गरुड-महोरगाहूँ। जं अमरराय-पहरण-णगा? ॥७॥ जं पुण्डरीय-चन्दुजयाहुँ। संविझुप्पहु-पक्षणन्जयाहूँ ॥८॥ धत्ता आऍहि आला हि कुविङ गरु थिउ भीसणु उक्लप-रषग्ग-करु । 'किं वयहिं बहुपडि बाहिरहि रिड स्वउ विहि मि केमि सिरह ॥५॥ [] कडु-अक्वरेण परिमासिरेण । करें धरिउ पहजशु पहसिएण ॥१॥ 'अं करि-सिर-स्य गुजलिय(?)देव । ते असिवरू महलहि एल्थु केम ॥२॥ लजिजहि घोलहि णाई मुशावु'। णिउ णिय-आवासहीं दुक्खु दुषनु ॥३ दस-बरिस-सरिस गय रयणि तासु । रवि उग्गउ पसरिय-कर-सहासु ।। कोका वि गरवइ पवर वर (?) हय भेरि पयाण दिग्ण णवार ॥५॥ अम्जणसुन्दरिह तुरन्तएण। उम्माहट लाइड जम्तएण ॥६॥ संचल्लइ पउ पर जेम जेम । कपिज्जह हियवउ तेम तेम ॥७॥ तेहएँ अवसरें बहु-जाणएहि। कर-चरण धरेपिणु राणएहि ॥८॥ घत्ता वलि-चण्ड भण्ड परियत्तियउ तेण वि उचाउ परिचिम्तियउ । 'लह एकवार करयले घरैवि पुशु बारह परिसई परिहरेहि' ॥९॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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