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________________ २७॥ सत्तरहमी संधि वाले आवर्त हो। अपनी सेना नष्ट होती और सुरोंके बगुलामुखमें जाती हुईं देखकर, उछलते हुछत्र और मत्तगजोंके नष्ट होते हुए शरीर देखकर, फुटे हुए रथपीठ और भ्रमरोंसे आलिंगन यान-बिमान देखकर, हयवरोंको गिरते और सुभटोंका घमण्ड नष्ट होते हुए देखकर, प्रसन्नकीर्ति रथ और गजसे युक्त सुरसेनासे आयामके साथ भिड़ गया, कपिध्वजी, महागज जिसके रथमें जुता है और धनुष जिसके हाथ में है, ऐसा वह महेन्द्रका पुत्र ॥१-९|| बत्ता-जर, हय और गजोंकी भर्त्सना कर, रथध्वजोंको भग्न कर वह व्यूह के बीच इस प्रकार स्थित था जैसे कामसे विद्ध जीवन लेता हुआ विदग्ध कामिनी-हृदय हो ॥१०॥ [४] इन्द्र के अनुघरोंने सामने आकर तीखे तीरोंसे प्रसन्नकीतिको विद्ध कर दिया। इसी बीच दृढमुजरूपी शाखायाले रावणके पिसृत्य श्रीमालने अपना रथ देवसमूहकी ओर बढ़ाया, पहले वह महायुद्ध में चन्द्रमासे भिड़ा, जिसके हाथमें माला था, जो सिंहपर आरूढ़ था और विजयलक्ष्मीसे आलिंगित्त था । ( श्रीमालने ललकारा)-"अरे कलंकी वक्र महिलानन ! मृग लांछन, मेरे सामने खड़ा मत रह, चला जा।" यह सुनकर, खण्डितमान चन्द्रमा खिसक गया। तब यमराज सामने आया, भैंसेपर बैठा हुआ, हाथमें दण्ड लिये हुए । त्रिभुवनके जनमन और नेत्रोंके लिए भयंकर | उछलते हुए उस दुष्ट दानवका भी आधे पलमें पार पा लिया। तब कुत्रेर सामने आया । परन्तु उसने तीरोंसे उसे भी विमुख कर दिया ।।१२।। पत्ता-युद्धमै धनुर्धारी श्रीमाली दुधर-सा मुखरोंके द्वारा वह पकड़ा नहीं जा सका उसी प्रकार, जिस प्रकार कुसुनिदरों द्वारा संताप करनेवाला और प्राणोंका अन्त करनेवाला कामदेव वशमें नहीं किया जा सकता |१०||
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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