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पउमचरिड
भाग कियात समरें तो ससि कुवेर-राए ।
केसरि-कमय-हुभवहा मल्लवन्त जाए ॥१॥ तिणि वि मिरिय खत्तु श्रामेल्लेंवि । धय-भूषास महारह पेल्छेवि ॥२॥ तीहि मि सभकण्डि रयणीयरु। णं धाराहर-वणे हि महीहरु ॥३॥ सरवर-सस्वहिं विणिक्षारिय । विधि हि देस मासास्थि ॥" अमर-कुमार णयर उद्धाइय। रिउ जिह एकाहि मिलवि पराइय ॥५॥ छाय सिलीमुकेहि सिरिमार्सि। परम-सिणिन्द चरण-कमकालिं ॥१५ अवससीहि सीस उरिकपणहूँ। ण णीलप्पलाई विक्षिण्णई ॥७॥ जड जड जाउहाशु परिसकट। तब सउ अहिमहु को पि ण थाहा॥ णिऍघि कुमार-सिरह छिजन्तई। रण-देवय चक्कि व दिन्त ॥५॥
घत्ता सक्सक्सु विरुजमा किर सपणजमइ ताव जयन्ते दिण्णु रहु। 'म. वाय जियसे सुइड-यन्हें अप्पुणु पहरणु धरहि बहु ॥३०॥
जयकारेचि सुरवई धाइभी जयन्ती ।
'गिसियर थाहि थाहि कहि जाहि महु जियम्तो ॥५॥ वाहि पाहि सबढम्मुहु सन्दशु । हुई धब देमि पुरन्दर-णन्दशु ॥२॥ सीरिय-सोमर-कपिणय-धाय? । बहु-वावल्ल-मल्ल-णारापहे ॥३॥ पद्धससिहि खुरुप्प-खेल्लग्गहुँ । पष्टिस-फलिह-सूल-फर-गहूँ ॥४॥ मोगर-मसि-चित्तदण्डिहि । सवल-हुलि-हरमुसल-मुसुण्डिहि५ असर-सिसत्तिपरसु-इस-पासहुँ। कणय कोन्त-घण-च-सहास? ॥६॥ रुक्स-सिलायक-गिरिवर बायई। हवि-जल-पवण-विज्छ-संघाप हुँ ।।७।। सं णिसुणे वि सिरिमाकि-पहरिसिउ । सुरवह-सुबाहों महारड्ड दरिसिज॥४॥ 'पई मेष्लेप्षिण जय-सिरि-छाहा । को महु अण्णु देह धब प्राइवें ॥९॥