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पउमचरित पेखे वि णिय-वल्ल मोहद्दन्तड । सुरक्षागला मुहें भावम्तउ ||४|| पेक्खें वि दस्थडन्तह इसई। मत्त-गय? भिज्ज तर गत्तई ॥५॥ पक्वं वि फुटम्सई रह-वीदहूँ। आपर-विमाणहूँ ममरुवगीठ ॥॥ पेक्लेवि हमवर पाहिजन्ता ! सुहब-मडफर सादिमन्ता ॥७॥ भायामेपिणु रह-गय-वाहणें। भिडिज पखण्णकित्तिसुर-साहणे ॥४॥ घाणर-चिन्धु महागय-सन्द। पाप-विहाधु महिम्दहों णम्दणु ॥९॥
घसा जर-हय-गय तागि समा मानिस हो वो मान लि बम्मे हि विन्धन्तड जीविउ लिन्तउ कामिणि-हिपउ वियर र जिह॥
[ 8 ] सुरवर किरोहि उरधरें घि अहि मुददि ।
कड़उ पसण्यकिति तिखेहि सिलिमुहेहि ॥३॥ तो एस्थन्तर दिन-भुअ-पाः। रावण-पित्तिएण सिरिमा ॥२॥ रहबरु वाहिर सुरवर-वन्दते। एकमउ 'मिट्ठ महाहवेचनहीं ॥१॥ कुन्त-विहस्थहीं सीहारुवहाँ। जयसिरि-पवर-जारिभवगूढहाँ ॥३॥ 'अरे स-कलङ्क वक्त महिलाणण। पुरड म थाहि माहि मय कान्छण' ।' तं णिसुणे चि भोरखण्डिय-माणड। शहसिन मियत पक्क जमराणउ na महिसास्तु दण्ड-पहरण-धरु ।। सिहुअप-जण-मण-गयण-मयस्सा । सो वि समुस्थरन्तु दणु-दुद्दउ । किउ णिविसमें पाराउदाउ ॥4॥ साम कुरु थक्क सवहम्मुहु। किडणाराऍहि सो वि परम्मुहु ॥९॥
धत्ता सिरिमालि धणुद्धरु रणमुहें दुबरु भरें वि ण लक्किउ सुरवर हिं। संसाड करता पाण हरन्त बम्म जेमक-मणिकर हि ।