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________________ सोलहमी संधि २६३ घत्ता-जो व्यक्ति एक योजनके भीतर चला जाता है वह जीवित नहीं बचता, उसी प्रकार, जिस प्रकार दुर्जन मनुष्यसे कोई नहीं मिन्टना ॥२॥ [१२] जिसके ऐसे सहायक और दुर्गहों तथा दूसरे भी साधन अत्यन्त उग्र हो । जिसके पास आठ लाख भद्गज हों, बारह लाख मन्द और सोलह लाख मृगगज, बीस लाख संकीर्ण गज हां, तथा रथा, अश्व और योद्धाओंकी संख्या ही नहीं है। यह उसकी पहली मूल सेना है, दूसरी सेना अनुचरों की है। तीसरा दुनिर श्रेणी चल है, चौथा अझातपार मित्रबल है, पाँचवीं अजेय अमित्र सेना है, छठी है आदविक सेना, जिग्न की गणना अज्ञात है। हे रावण, उसकी उगृह-रचनाका अन्त नहीं है, देवता भी उसकी सेनाका भेद नहीं जानते | अश्व, गज, रथ और नकि उस युद्धमें वह इन्द्र तुम्हारे द्वारा कैसे जीता जा सकता हूँ ?" ||१८|| ___ पत्ता-दशवदनने तब कहा, “यदि उसे मैं युद्ध में नहीं जीतूंगा तो ज्वालमालाओंसे युक्त आगमें अपने आपको होम दूंगा ?" ॥९|| [१३] इन्द्रजीत कहता है-“हे सुरसारभूत दूत, बहुत कहनेसे क्या? जो हाल हमने यम और धनदका किया, और जो सहस्रकिरण और नलकूबरकातात, आज वही हाल तुम्हारा करेगा । इसलिए इन्द्र ठहरे और युद्ध के लिए तैयार हो जाये।" यह वचन सुनकर और उठकर जाते हुए चित्रांगने कहा, "हे देव, इन्द्र के द्वारा आप निमन्त्रित हैं, इन्द्रजीत विजयन्तके द्वारा तुम भी आमन्त्रित हो। श्रीमालि कुमार शशिध्वजके द्वारा आमन्त्रित है, सुग्रीय, तुम भी शाखाध्वजियों (वानरों)के द्वारा आमन्त्रित हो, यमराजके द्वारा जाम्बवान्, नल और नील,
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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