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पउमचरिउ
घत्ता
कोण-परिमाण
जो तुक सी गउ जिय ।
जिह दुज्जण वयगहुँ को वि ण पासु समिलियइ ॥ ९ ॥
जसु एहउ अस्थि सहाउ दुग्गु । जसु कटु कष भहुँ गया हूँ । संकिण- गइन् बोस लक्ल । एउ पहिला मूळ - सेण्णु । atra सेणी-बन्दु दुणिवाह | दुज्च पञ्चम अमित-सेन्जु । रावण पुणु बूह नाहि छेउ । इय-गय-रह-पर- जुज्झहुँ तहेच ।
सुबह दहवय तो अप्पन घसमि
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अण्णु वि साइणु अञ्चन्त - उग्गु ॥१॥ बारह मन्दहुँ सोलह मया हूँ || २ || रह- तुरय-भवहं पुणु णत्थि सङ्घ ॥ ३ ॥ बलुवीय मिश्च सणउ अण्णु ॥ ४ ॥
उथल मित्त वलु अणाय पारु ॥५॥ छड आडविच अणाय- गण्णु ॥३॥ अमरा चि वलण मुणन्ति मेउ ॥७॥ सो सुरबड़ जिज्जद समरें केव ॥८॥
धत्ता
'जइ सं जिमि र आइयाँ । जामालाइ जलणें ॥९॥
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इन्दइ पभणह 'सुर-सार-भूअ ।
किं जम्पिएण वहवेण दूर ||१|| जं किउ जम धणय विधि मि ताहें। जं सहस्रकिरण-लकुम्बराई ॥२॥
सं तुह वि करेसह ताउ अज्जु । संवयणु सुर्णेवि उट्टन्तपुर्ण । 'णिमन्ति-सि इन्द्रेण देव | सिरिमाथि कुमारें हिं सविधर्हि । सुग्गीय तु भि साहब
खहु ठाउ पुरन्दरु जुज्झ सज्जु ॥३॥ चिसमें कुम्बइ जन्तपूर्ण ॥ || विजयन्ते इन्दर तुहु मि तेव ॥ ५॥ ।। ६ ।।