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________________ २६२ पउमचरिउ घत्ता कोण-परिमाण जो तुक सी गउ जिय । जिह दुज्जण वयगहुँ को वि ण पासु समिलियइ ॥ ९ ॥ जसु एहउ अस्थि सहाउ दुग्गु । जसु कटु कष भहुँ गया हूँ । संकिण- गइन् बोस लक्ल । एउ पहिला मूळ - सेण्णु । atra सेणी-बन्दु दुणिवाह | दुज्च पञ्चम अमित-सेन्जु । रावण पुणु बूह नाहि छेउ । इय-गय-रह-पर- जुज्झहुँ तहेच । सुबह दहवय तो अप्पन घसमि [R] अण्णु वि साइणु अञ्चन्त - उग्गु ॥१॥ बारह मन्दहुँ सोलह मया हूँ || २ || रह- तुरय-भवहं पुणु णत्थि सङ्घ ॥ ३ ॥ बलुवीय मिश्च सणउ अण्णु ॥ ४ ॥ उथल मित्त वलु अणाय पारु ॥५॥ छड आडविच अणाय- गण्णु ॥३॥ अमरा चि वलण मुणन्ति मेउ ॥७॥ सो सुरबड़ जिज्जद समरें केव ॥८॥ धत्ता 'जइ सं जिमि र आइयाँ । जामालाइ जलणें ॥९॥ [ 1 ] इन्दइ पभणह 'सुर-सार-भूअ । किं जम्पिएण वहवेण दूर ||१|| जं किउ जम धणय विधि मि ताहें। जं सहस्रकिरण-लकुम्बराई ॥२॥ सं तुह वि करेसह ताउ अज्जु । संवयणु सुर्णेवि उट्टन्तपुर्ण । 'णिमन्ति-सि इन्द्रेण देव | सिरिमाथि कुमारें हिं सविधर्हि । सुग्गीय तु भि साहब खहु ठाउ पुरन्दरु जुज्झ सज्जु ॥३॥ चिसमें कुम्बइ जन्तपूर्ण ॥ || विजयन्ते इन्दर तुहु मि तेव ॥ ५॥ ।। ६ ।।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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