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जमराएं जम्बच-गील हो । सोमेण बिहीण कुम्मयण्ण ।
परिवार्डिएँ तुम्ह भुजेवर सवें हिं
सण वि पुरन्दरु
णं विज्झ उप्पर
पउमचरिय
।
गड एम मण वि चित्त ते 'परमेसर दुज नाहाणु । तं निसुर्णेवि पवलु अराष्ट्र-पक्तु । हय मेरि तूर पड़ उह् वज । एक्खरिथ तुरङ्गम जन सवड । बीसासु वसु रण-भर समस्य । किंपुरिस गरुड़ गन्धव्य जक्ख । जं यर-ओलिहि वलु ण माइ
।
मिग- मन्द-मह-संकिण्ण-गादि । बिउ अग्गएँ पच्छाएँ भव-समूहु । सुरवर स एवर-पहरण कराळ | सियाहररतुष्पदळकल
हृय पक्ष चञ्चल वलमा
ऍड जेसिड स्क्खष्णु गपधरासु ।
हरिसिं हत्थ-पहर खड़ों ॥७॥ अवरेहि मि केहि मि के त्रिष्ण ॥4
घत्ता
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सुर-परिमिड सुरवर-राउ जेधु ॥ १ ॥ करे सन्धि तुम्हें हिं समाणु' ॥ २ सण्णा सरह दससयवस्तु ॥ २ ॥ किय मत्त महागय सारि-सज्म ॥ ४ ॥ जस-लुद्ध कुछ सण्णव सुहव ॥ ५ ॥ जम-ससि कुबेर पहरण-विहृत्य || ३ || किष्णर पर असर बिरल्कियख ॥७॥ तं इयण उपऍषि जाइ ॥८॥
घत्ता
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दिणरु एउ णिमन्तणउ |
गरुन पहारा भोयण ॥९॥
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णिसाउ भइरादऍ चति ।
सस्य महाषणु - पामति ॥ ९॥
१५ ]
घद्ध विरवि पहिं चाव सऍहिं ॥१॥ सेणाव -मन्सिहिं रह चू. हु ॥ १ ॥
काहिँ पहिलो मवाल ॥३॥ गऍ गएँ पण्णारह गसक्ख ॥ ४ म तिमि तिणि इऍ इऍ स खम्भा ॥५ सेसिउ जे पुणु वि धिट रहबरासु ॥५॥