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________________ २६४ जमराएं जम्बच-गील हो । सोमेण बिहीण कुम्मयण्ण । परिवार्डिएँ तुम्ह भुजेवर सवें हिं सण वि पुरन्दरु णं विज्झ उप्पर पउमचरिय । गड एम मण वि चित्त ते 'परमेसर दुज नाहाणु । तं निसुर्णेवि पवलु अराष्ट्र-पक्तु । हय मेरि तूर पड़ उह् वज । एक्खरिथ तुरङ्गम जन सवड । बीसासु वसु रण-भर समस्य । किंपुरिस गरुड़ गन्धव्य जक्ख । जं यर-ओलिहि वलु ण माइ । मिग- मन्द-मह-संकिण्ण-गादि । बिउ अग्गएँ पच्छाएँ भव-समूहु । सुरवर स एवर-पहरण कराळ | सियाहररतुष्पदळकल हृय पक्ष चञ्चल वलमा ऍड जेसिड स्क्खष्णु गपधरासु । हरिसिं हत्थ-पहर खड़ों ॥७॥ अवरेहि मि केहि मि के त्रिष्ण ॥4 घत्ता [ १७ ] सुर-परिमिड सुरवर-राउ जेधु ॥ १ ॥ करे सन्धि तुम्हें हिं समाणु' ॥ २ सण्णा सरह दससयवस्तु ॥ २ ॥ किय मत्त महागय सारि-सज्म ॥ ४ ॥ जस-लुद्ध कुछ सण्णव सुहव ॥ ५ ॥ जम-ससि कुबेर पहरण-विहृत्य || ३ || किष्णर पर असर बिरल्कियख ॥७॥ तं इयण उपऍषि जाइ ॥८॥ घत्ता [ दिणरु एउ णिमन्तणउ | गरुन पहारा भोयण ॥९॥ - णिसाउ भइरादऍ चति । सस्य महाषणु - पामति ॥ ९॥ १५ ] घद्ध विरवि पहिं चाव सऍहिं ॥१॥ सेणाव -मन्सिहिं रह चू. हु ॥ १ ॥ काहिँ पहिलो मवाल ॥३॥ गऍ गएँ पण्णारह गसक्ख ॥ ४ म तिमि तिणि इऍ इऍ स खम्भा ॥५ सेसिउ जे पुणु वि धिट रहबरासु ॥५॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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