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________________ सोलहमी संधि २५५ था और जब उसने हजार विद्याएँ सिद्ध की थीं, जब उसके हाथमें वळवार आयी थी, जब उसे मन्दोदरी दी गयी थी, जब उसने सुरसुन्दर और कनकको बाँधा था, जब उसने युद्धसे धनदको खदेड़ा था, जब उसने त्रिजगभूषण महागजको पकड़ा था, जब उसने कृतान्तको सारा था, जब बहु तबूहराका अपहरण करने के लिए गया था, और भी रत्नावली से पाणिग्रहण किया था, उस समय तुमने जो शत्रुका नाश नहीं किया, उससे अब वह इतना बड़ा हो गया ||१-८ ॥ धत्ता-इन्द्र कहता है, "क्या सिंह गजके बच्चे को मारता है, कि आग सूखे पेड़को आसानीसे जला देती है" ॥९॥ [५] यह उत्तर देकर गजगति से चलनेवाला इन्द्र एकान्त भवनमें पहुँचा । जहाँ कोई भी आदमी भेटको न ले सके। जहाँ शुक और सारिका को भी नहीं ले जा सकते। वहाँ प्रवेश कर अगरराज पूलता है, "इस समय शत्रु अजेय हैं, क्या उपाय हैं ? क्या साम, दाम और भेद ? क्या दण्ड जिसका परिणाम अज्ञात हैं ? कर्म आरम्भ और उपवयका मन्त्र क्या है, पौरुष द्रव्य और सम्पत्तिसे युक्त होनेका उपाय क्या है ? देशकालका सर्वश्रेष्ठ विभाजन क्या है ? प्रतिहारको किस प्रकार ठीकसे विनियोजित किया जाये ? कार्य की सिद्धिका पाँचवाँ मन्त्र क्या है ? सत्य विचारवान् सुन्दर कौन हैं ?" यह सुनकर भारद्वाज ने कहा, "हे देव, जो आपने प्रारम्भ किया है, वही ठीक है । कार्यके समाप्त होने पर ही इसका रहस्य प्रकट होगा | परन्तु मन्त्रियोंसे केवल मन्त्रभेद करना चाहिए।" यह सुनकर विशालचक्षु कहता है, "यह तुमने कौन-सा पक्ष उद्घाटित किया है ? ॥१-१०॥ घत्ता-इन्द्र तो ठीक जो अशेष राज्य करता है नहीं तो प्रमु मन्त्रीके बिना शतरंज में भी चाल नहीं चलता” ॥११॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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