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________________ 1 सोलहमी संधि १५१ क्या व्यसन हैं, कौन-सा गुण है ? क्या विनोद है ?" यह सुनकर राक्षस गुणोंसे प्रेरित गुप्तचरोंने इन्द्रसे कहा, "परमेश्वर, युद्धमें रावण अचिन्त्य है, वह उत्साह मन्त्र और प्रभुशक्तिसे युक्त है। चारों विद्याओं में कुशल, और ६ गुष्पोंका निवास हैं। उसके पास ६ प्रकारका यल और ७ प्रकारकी प्रकृतियाँ हैं । उसका शरीर ७ प्रकारके व्यसनोंसे मुक्त है । प्रचुर बुद्धि, शक्ति, सामर्थ्य और समय से गम्भीर है । ६ प्रकारके महाशत्रुओं का विनाश करनेवाला और १८ प्रकारके तीर्थोंका पालन करनेवाला है ।। १-८|| पत्ता - उसके शासनकालमें सभी स्वामीसे सम्मानित हैं। उनमें कोई क्रुद्ध लुब्ध नहीं है। कोई भी भीरु और अपमानित नहीं है ॥९॥ [२] नीति के बिना वह एक भी पग नहीं देता, आठ प्रकार के विनोदोंमें अपना दिन बिताता है। आधा पहर प्रतापकी खोज में, और अन्तःपुरकी रक्षा और सेवामें, आधा पहर गेंद खेलने, अथवा दरबार लगाने में, आधा पहर स्नान और देवपूजामें, भोजन- कपड़े पहनने और विलेपन में । आधा पहर द्रव्यको देखने १. विद्याएँ ४ हैं - आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनोति । सांख्य योग और लोकायत को बान्वीक्षिकी कहते हैं । साम ऋग् और यजुर्वेद त्रयी कहलाते हैं । कृषि, पशुपालन और बाणिज्य वार्ता है। गुण ६ होते हैं - सन्धि विग्रह, यान, आसन, संश्रय और द्वैधीभाव । बल ६ हैं - मूलबल, भृत्यचल, श्रेणिबल, मित्रबल, अमित्रवल और अविकल प्रकृतियाँ ७ हैं - स्वामी, अमात्य राष्ट्र, दुर्ग, कोष, सेना और सुहृद् । व्यसन ७ हैंद्यूत, मद्य, मांस, वेश्यागमन, पापघन, चोरी, परस्त्रीसेवन | अन्तरंग शत्रु ६ है - काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष । तीर्थ अठारह हैंमन्त्री, पुरोहित, सेनापति, युबराज दौवारिक, अन्तर्वेशिक, प्रशास्ता, समाहर्ता, संविधाटा, प्रदेष्टा, नायक, पौर, व्यावहारिक, कर्मान्तक मन्त्रिपरिषद्, दण्ड, दुर्गान्तपाल और भाटविक ·
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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