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________________ पडमचरिक तं गिसुणे धि दाशु-गुण-पेरिए हैं। सहसक्यहाँ मानिसउ हैरिएहि ॥१॥ 'परमेसर र रावणु अधिन्तु । उच्छाह-मन्त-पटु-सचि-यन्तु 11५|| चउ-बिन-माल -गाया। मालुस-पाइपमासु ॥६॥ सत्तविह-रसण-विरहिय-सरीरु। पहलदि-सचि-सा काल-पोर ॥७|| भरियर-घरग-विणासपालु। भद्वारविह-शिस्त्रापालु ८ घत्ता तहाँ केरण साहुण सम्बु साम-सम्माणियट । पड कुबूङ लवड को त्रि मी अवमाणियउ ॥१॥ विणु णित्तिएँ एक्कु वि पर पप देह । भट्टविह-विणोएं दिवसु णे ॥१॥ पहरख पगाव-गवेसणेण । मन्तेउर-रायण-पेसणेण ॥२॥ पहह णघरु कम्हुल-खणेण ] अहबद अस्थाण-णियन्त्रण ३ पहरद्ध पहाण-देषवणेण । भोयण-परिवाण-विलेवणेण ||१11 पहर दष्व-भवलोयण। पाइ-पचिपाहुस-होयगेण ॥५॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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