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पहर लेह वायण-खणेण । पहस्तु सहर-ग लवल-बल-दरिसणेण ।
पश्चरण
पउमचरिय
पहरखु नराहिउ जमथाण परिनि
जिह दिवसुतेम froाप्य राय । पहिलए पहर विचिन्तमाणु | वीय गुणणे त्रि पहाणासणेण । तयएँ जय तूर- महारवेण । चरस्थऍपमें सोच-षण । छह-पष्टह- घिडणेण । सप्तमेँ मन्तिहि स मन्तणेण । अट्टमें सासणार- पेसणेण । महणसि परिपुच्छ आखणेण ।
इथ सोलह-भाएँ हि मणु जुज्झहों उप्पर
सासणहर हेरि-विसजमेण ॥३॥
अश्वगन् र-ग-म-इ-गवेसणेण ॥८॥
घसा
सेणावइ-संभावण
परमण्डक - आरूसणेण ॥१२॥
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णिसि णेह करेपिणु अट्ट भाय ॥१॥ अच्छे णिगूद्ध पुरिसें हिं समाणु ५२ अहवह पवरह- खुड-इ-संसणेण ॥ ३ ॥ अन्तेउरु विसद् मणुच्छषेण ॥४॥ चदिसु दिवेण परिरक्खणेण ॥५॥ सम्मरयसत्थ- परिक्षण ॥ ६ ॥ णिय - रज्ज - कज्ज -परिचितणेण ॥ ७ ॥ सुविधा में वेज्ज-संभासणेण ॥८॥ पिम्मिति पुरोडिय घोसणेण ॥९॥
धत्ता
दिवसु विरयणि विशिष्वह । तासु णिरास्डि उच्छह ॥ १० ॥
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सुम्हš हूँ एक्कविणाहिँ सन्ति । सुविण वाळसणें जें णड मिह सत्तु | जय णामउ छु छु
दसासु
विण हुब उच्छाइ सस्ति ।।१७ नाह मंसु जि क्रिउ कुठार-मेन्तु ॥२॥ जब साहित विजा-सहासु ॥३॥