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पण्णरहमो संघि रावणसे यह भी कहना कि योद्धाओंकी लीख पोंछ देनेवाला ओ सुदर्शन चक्र इन्द्रायुध कहा जाता है, वह भी है।" यह सुनकर दूती गयी। वह केवल रावणके डेरेपर पहुँची ।।१-८1।
पत्ता-उपरम्भाने जो कुछ कहा था, वह उसने देवोंको सन्त्रास देनेवाले दशाननसे कह दिया। इतना और कि "तुम्हारे वियोगके दाइसे स्वामिनी निश्चित रूपसे मर रही है" ||२||
[१३] यदि तुम आज भी चाहने लगते हो, तो जो सोचते हो वह सम्भव हो सकता है। आशाली विद्या सिद्ध होती है, और पुरवर भी, सुदर्शन चक और नलकूबर भी।" यह सुनकर उसने अत्यन्त विचक्षण विभीषणका मुख देखा । दूतीको स्नान करने के लिए भेज दिया गया और दोनों भाई मन्त्रणाके लिए बैठ गये । “अहो साहस, जो स्वामी छोड़नेके लिए कहता है, जो महिला कर सकता है, वह मनुष्य नहीं कर सकता। दुर्महिला ही भीषण यम नगरी है, दुर्महिला ही जगत्का अन्त करनेवाली अशनि है। दुर्महिला ही विषाक्त सर्पफन है । दुर्महिला ही यमके भैंसोंकी चपेट है, दुर्महिला ही मनुष्यको बहुत बड़ी व्याधि है, दुर्महिला ही घरमें बाघिन है" ॥१-८||
पत्ता-शुभदर्शन विभीषण कहता है, "यहाँ यह घटित नहीं होता। हे स्वामी, बैठे हुए यहाँ भेदका दुसरा अवसर नहीं है ।।२।।
[१४] यदि कारण, शत्रुको जीतना और धन कंचनसे समृद्ध नगरको प्राप्त करना है, तो कपदसे यह कह दो, 'मैं चाहता हूँ।' असती और वेश्यामें कोई दोष नहीं । शायद किसी प्रकार विद्या मिल जाये, फिर तुम उपरम्भाको मत छूना। यह सुनकर दशानन वहाँ गया जहाँ दूती स्नान करके निकल रही थी। उसे दिव्य वस्त्र और रत्नोंसे चमकते हुए आभूषण दिये गये । केयूर हार और कटिसूत्र और कटकसे युक्त नूपुर ।