SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ पउमचरित अवरइ मि देवि तोसिय-मणेण । भासाल-मित्र मग्गिय सणेण ॥७॥ ताएँ वि दिया परिसुट्टियाएँ। णिय हाणि ण जाणिय मुद्धिया॥४॥ घत्ता ताव विसाजिय भासालिय गहें गचन्ति पराइय । सं विमाहरु णककुन्धरु मुऍषि णा सिथ भाइय ॥१॥ गय दूई किन कलयलु भ. हिं। परिवेडिङ पुरवर गय-घहि ॥१॥ सण्णहवि समर पिच्छिन-मणहों । णलकुम्वरु भिडिउ विहीखणहाँ ॥२॥ बल बलही महाइ दुजयहो। रहु रहहाँ गइन्दु महागयहाँ ॥३॥ हउ यहाँ राहिल णरत्ररहों। पहरण-धरु घर-पहरण-धरहों ॥३॥ चिन्धिट चिन्धियहाँ समावडिङ । वइमाणित वइमाणिह भिडिउ ॥५॥ सहि न तुम भीमान ! हि सहसकिरण रण रावणेण ॥९॥ तिह विरह करविणु तक्खणेण। णलकुचर परिउ विहीसणेण ॥७॥ सहुँ पुरेण सिधु से सुरिसणु । उपरम्भ ण इच्छइ दहवयणु ॥८॥ घत्ता सो ज्ने पुरेसरु णलकुम्वरु णियय कर लेवाविउ । समउ सरम्भएँ उवरम्मएँ रज्जु स इं भुनाविउ ॥९॥ [१६. सोलहमो संधि शलकुम्बारे धरिय विभप पुढे वइरि तणएँ । णिय-मन्तिहि साहियउ इन्दु परिहिउ मन्तण । जे गूढ पुरिस पट्टविय तेण । ते आय पढीचा तपणेण ॥१!! परिपुष्ट्यि 'लह अपरषदों दवत्ति । केहउ पडु केहिय तासु सति ॥२॥ किं वल केहउ पाइस-कोउ। किं वसणु कवणु गुणु को वियोउ ॥३॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy