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पडमचरित
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बुचा रहनु भर-बिह-लुइणु। तणिसुणे विदई जिग्गय ।
इन्दाबहु भन्छइ सुभरिसणु' कसाचासु णवर गहम ॥८॥
घत्ता
कहिउ दसासहाँ सुस्तासहों में उपरम्मएँ बुत्तड । 'एसित दाहण तुह विरहण सामिणि मरइ णिरुत्तउ ॥५॥
[१३] सवरम्भ समिछहि भज्नु जह। वो गं चिहि त संमवह ॥३॥ जासाली सिजाइ पुरवरु वि। सुभरिसणु चक्कु पहकुष्वर वि' ॥१॥ संणिसुणेवि सुख विचारसणहाँ। अवलोइड पयशु विहीसणहों ॥३॥ पइसारिब दुई मजणएँ। थिय वे षि सहोयर मन्तणएँ ॥४॥ 'अहो साहसु पमण पहु-मुषवि । महिल करइ तं पुरिसुण वि ॥५॥ दुम्मदिल जि भीसण जम-णयरि । दुम्माहित जि असणि जगन्त-यरि ।।। दुम्माहिल जिस-घिस भुया-फर्छ । दुम्माहिक जि वहवस-महिस-महा॥ दुम्महिल जि गाय पाहि णरहों। दुम्महिक जि परिध मा धरहों ॥६॥
धत्ता
भपा विहीसणु सुरु-दैसशु 'एत्थु एउ ण घट्टइ। . सामि णिसपणही णउ अण्णहाँ भेयही अवसरु वह ॥९॥
[५] जा कारणु वहरि सिद्धऍण | गपरें धण-कणय-समिवरण 191 तो कवडेण वि "इस्लामि" मणु । पुष्णालि असपि दोसु कबणु ॥२॥ सुडु केम वि विज समावडउ । उपरम्म सुझु पुणु मा परउ' ॥३॥ तं णिपुणेधि गउ दहगीत तहि। मजणयहाँ जिग्गय दूह जहि ॥४॥ देवाई पस्थर होइगई। भाहरण रमणुजोड्याई ॥५॥ केकर-हार-कटि सुसाई। उरई कडध-संजनाई ॥३॥