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________________ 20 पदमचरित पत्ता साव विरुदेहि जस-लुद्धे हि रावण-भिश्च-सहा हि । बेडिट पुरवर संवच्छह णावह घारह-मासे हि ॥९॥ जन्त भयएँ बिहडफोहि। दहमुहद्दी कहि केहि मि मरेंहि ॥१ 'दुग्गेज्नु भद्धारा सं णयरु । सिद्धहु जिह सिहुअण-सिहरू ॥२॥ तहिं जन्त-सयई समुडियाई। जम-भरहूँ जमेण व छड़ियहूँ ।।३॥ . जोयणही मों जो संचरह । सो पडिजीवन्तु ण णीसरह ॥४॥ तं गिसुणे वि चिन्तावष्णु पहु। विउ नाम जाम उवाम्म बहु ॥५॥ अणुरत परोक्षए जे जसण। जिह मछुमार कुसुम-गन्ध-बसण ॥३॥ जगणइ कस्पुरु ण चन्दमसु । ण ण चन्दणु तामरसु ॥७॥ तहैं दसमी कामावस्थ हुय । विसग्गि-दृ उ कह मि मुय ॥७॥ घत्ता 'इमु मा जोवण ऍहु (सो) रावणु एह रिछि परिवारहों। भइ मेलावदि तो हर्के सहि एत्तिउ फलु संसारहों' ॥५॥ [१२] तंणिसुणे वि चित्तमाल चबइ। 'मइ हातिए काइँ ण संभषइ 491 पाएमु देहि छुडु पत्तडउ । ऐंड सुन्दरि कारणु केसडउ ।।२॥ सुद्द रुवहीं रावणु होइ जह। सइ वा तो एसदिय गई ॥३॥ तं णिमुणवि मणहर-हरयलु । उवरम्भा बिहसिउ मुइ-कमलु ॥४॥ पहले हद सहि ससिमुहिंस-गह । सो सुइउ प छह कह वि जाइ ||५|| भासास-विस तो रेहि सहो। अण्णु वि वजारहि दसाणणहाँ ॥६॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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