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पदमचरित
पत्ता साव विरुदेहि जस-लुद्धे हि रावण-भिश्च-सहा हि । बेडिट पुरवर संवच्छह णावह घारह-मासे हि ॥९॥
जन्त भयएँ बिहडफोहि। दहमुहद्दी कहि केहि मि मरेंहि ॥१ 'दुग्गेज्नु भद्धारा सं णयरु । सिद्धहु जिह सिहुअण-सिहरू ॥२॥ तहिं जन्त-सयई समुडियाई। जम-भरहूँ जमेण व छड़ियहूँ ।।३॥ . जोयणही मों जो संचरह । सो पडिजीवन्तु ण णीसरह ॥४॥ तं गिसुणे वि चिन्तावष्णु पहु। विउ नाम जाम उवाम्म बहु ॥५॥ अणुरत परोक्षए जे जसण। जिह मछुमार कुसुम-गन्ध-बसण ॥३॥ जगणइ कस्पुरु ण चन्दमसु । ण ण चन्दणु तामरसु ॥७॥ तहैं दसमी कामावस्थ हुय । विसग्गि-दृ उ कह मि मुय ॥७॥
घत्ता 'इमु मा जोवण ऍहु (सो) रावणु एह रिछि परिवारहों। भइ मेलावदि तो हर्के सहि एत्तिउ फलु संसारहों' ॥५॥
[१२] तंणिसुणे वि चित्तमाल चबइ। 'मइ हातिए काइँ ण संभषइ 491 पाएमु देहि छुडु पत्तडउ । ऐंड सुन्दरि कारणु केसडउ ।।२॥ सुद्द रुवहीं रावणु होइ जह। सइ वा तो एसदिय गई ॥३॥ तं णिमुणवि मणहर-हरयलु । उवरम्भा बिहसिउ मुइ-कमलु ॥४॥ पहले हद सहि ससिमुहिंस-गह । सो सुइउ प छह कह वि जाइ ||५|| भासास-विस तो रेहि सहो। अण्णु वि वजारहि दसाणणहाँ ॥६॥