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________________ पण्णरहमो संधि २५ [९] नारदको धीरज देकर महको वश कर उसकी कन्यासे पाणिग्रहण कर लिया । नौ वर्षे वहाँ रहकर फिर कूच कर वह मगध के लिए गया। रावणको देखकर मथुराका राजा मधु आशंकित हो उठा, रावणने इसे वशमें कर लिया, उसे घमरेन्द्र देवने समस्त आयुधोंमें श्रेष्ठ मुलायुध । विनाशकी कन्या भी अपने हाथमें लेकर, वह जाकर कैलास पर्वतकी धरतीपर ठहर गया। उसे सुन्दर मन्दाकिनी नदी दिखाई दी, जो चन्द्रकान्त मणियोंके नीर निर्झरोंसे भरी हुई थी, गजमदसे नदीके दोनों तट मैले थे | योद्धाओंने अश्वों और गोंके साथ स्नान किया। जिनवरके भवनोंकी बन्दना करनेके पश्चात् दसमुख निर्वाण स्थानोंको दिखाने लगा, "यह सिद्धिरूपी वधूके मुखकमलका भ्रमर, भरतेश्वर और बाहुबलि है ।।१.९|| __घत्ता-इस आतापिनी शिलापर आदरणीय वाली स्थित थे जिनके भारी पदभारसे मैं कछुएके आकारका बना दिया गया था। ॥१०॥ [१०] यम, धनद् और सहस्रकिरणका दमन करनेवाला दशमुख जब अष्टापद पर्वत पर था, तभी यह बात दुर्लध्य नगरके राजा नलकूबरके पास पहुँची।" वह सोचने लगा, "अश्व, गज और रथोंसे प्रबल शत्रुसेनाके निकट है, दूसरे इन्द्र के युद्ध में अजेय रावण इस समय जिनकी वन्दना-भक्ति करने के लिए मेरु पर्वतपर गया हुआ है, इस अवसर पर क्या उपाय किया जाये ।" तब हरिदमन नामक मन्त्री बोला, "बलवान् यन्त्र उठवा दो, चारों दिशाओं में आशालीविद्या स्थापित कर दो जिससे नगर अछेद्य और अभेद्य हो जाये, तभी इसकी रक्षा कर सकते हैं कि उसे भेद न मिले।" यह सुनकर उन्होंने भी ऐसा ही किया और सतीके चित्तकी तरह नगरको दुर्लध्य बना दिया ॥१-८॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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