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________________ पण्णरहमी संधि २३९ अंजनगिरिपर शरद भेध हो। धनुष लिये हुए और मत्सरसे भरकर वह उछला और खुरपेसे कवच काट दिया, लंकाधिप किसी प्रकार बच गया। जब वह पूरे आयामसे तीर छोड़ता तो ऐसा लगता, जैसे विना पंखों के पंखी धरतीपर जा रहे हों। सहस्र किरण ने निरीक्षण किया और ललकारा, "कहाँ धनुष सीखा है ? जाओ-जाओ, पहले अभ्यास कर लो, बादमें फिर युद्ध में लड़ना ।" यह सुनकर यमकी तरह उसकी ओर देखते हुए रावणने हाथीको हाथीकी ओर प्रेरित किया । विगतमद उसने हाथीको निकट ले जाकर सहस्रकिरणको मस्तकपर भालेसे आहत कर दिया ॥१-८।। __घता-जबतक भयंकर और मत्सर भरा हुआ वह अमिवर हाथ में लेकर प्रहार करता तबतक दशाननने आयास करके उसे पकड़ लिया ।।९।। [६] मदविगलित उसे रावण अपने घर ले गया, मानो श्रृंखलाओंसे जकड़ा हुआ महामत्त गज हो। इतने में, कहीं दशानन मुझे मी ने पकड़ ले मानो इस डरसे सूरज डूब गया। अन्धकार मुक्तभावसे फैलने लगा मानो निशाने स्याहीकी पोटली खोल दी हो । अत्यन्त सुशोभित चन्द्रमा उग आया मानो जगरूपी घरमें दीपक जल उठा हो । सुप्रभातमें सूर्यका उदय हो गया, मानो निशाका मइयवट्ट ( मैला मार्ग ?) चला गया। इतनेमें भवनिशाका नाश करनेवाले जंधाधरण महामुनिके पास सहस्रकिरणका यह समाचार गया कि वह पकड़ लिया गया है । तब चार प्रकारके ऋपि संघोंसे घिरे हुए ॥१-७॥ पत्ता-पाँच महानतोको धारण करनेवाले जंघाचरण महा. मुनि वहाँ गये जहाँ रावण था । दशानन ने उनके उसी प्रकार दर्शन किये जिस प्रकार श्रेयांसने आदरणीय पजिनके किये थे ||८||
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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