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રીઢ
पडमालि
साणा खुरुप्प कप्परिड । लाहिट कह व समुम्बरिउ ॥॥ जे सम्बाया भुभइ सर । लुअ-पात पक्षि णे जम्ति घर ॥ दुसस्यकिरणेण पिरिविरमयड। पचारित 'कहिं अणु सिक्खियउ॥५॥ जलाचि साम अम्मासु करें। पच्छल जुजोजहि पुणु समरें ॥५॥ सं णिसुणे वि जमेण व जोइयउ। कुअरु कुक्षरहाँ पचोइयड ॥७॥ भासणे घोऍषि विगय-भउ । णरबह गिडालें कौन्तेण इउ ॥६॥
घसा जाम भयकर असिवर-करु पहराइ भाकर-भरियउ । ताम दसासेंण श्रायासेंण उपएनि पटु धरिपउ ॥५॥
[१] णि णिय-णिलयहाँ मय-वियलियउ। गं मत्त-महागउ णियकिय ॥ 'मा मह मि घरेसइ दहवयणु'। णं भयएँ रवि गर भस्थत्रशु ॥२॥ पसरिड अम्धार पमोपलर । णिसिएँ पित्त मसि-पोष्टलउ ।।३।। समि उग्गउ सुट्ट सुसोडियउ। जग-हरें दीवट वोहियउ॥m सुविहाणे दिवायरु उग्गमिर। शं रयणिहिं मइयवटु भमिउ ॥५|| तौ णवर जसपारण रिसिह । सयकरहों विणासिय-भव-णिसिहे ॥ गय वत्त 'सहासकिरण परिज'। बउषिद्द-रिसि-स परियरिड 11 ॥
धत्ता
रावणु जेत्तहें गडं ( सो) तेत्त पञ्च-महाबय-धारउ । दिट्ट दुसासैंण सेयंसेंण णावह रिसहु मदारउ ॥४॥