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________________ पण्णरहमो संधि २00 भी आकाशमें स्थित हैं। उनके अस्त्र है पवन, गिरि, वारि और अग्नि । लोगोंमें इनके समान डरपोक दूसरा नहीं है।" यह सुनकर निशाचर लज्जित हुए और आकाशतल में विद्याओंसे रहित हो गये। पाइलकिरण हाने दामोसे हजार हजार तीरोंसे साधुको बेधने लगा। उसने दूर ही शत्रुबलको उस प्रकार रोक लिया, जिस प्रकार जम्बूद्वीप समुद्रजलको रोके हुए है ॥१-८| घत्ता- स्थानको नहीं देखते हुए, दृष्टि, मुट्ठी और सरसमूहका सन्धान करनेवाले उसके पास शत्रुबल नहीं पहुँच सका, वह वैसे ही छिप गया जैसे सूर्यके सामने अन्धकार ॥२॥ [] तब प्रतिहारने अष्टापदको फैपानेथाले रावणसे कहा, "अकेले होते हुए भी उसने प्रहारके द्वारा समूची सेनाको अवरुद्ध कर दिया है, युद्ध में यह एक रथवर घुमाता है, पर लगता है जैसे हजार रथ घूम रहे हैं। एक धनुष, एक मनुष्य और दो हाथ, परन्तु चारों दिशाओंमें तीरोंकी वर्षा हो रही है। किसीका कर, तो किसीका उर कद गया है। किसीका हाथी तो किसीका रथ जर्जर हो गया है।" यह सुनते ही रावण समुद्रकी तरह क्षुब्ध हो गया और शीघ्र ही त्रिजगभषण गजवरपर चढ़ गया। वह वहाँ गया, जहाँ सहस्त्रकिरण था। उसने ललकारा, "हे पाप ! मर, प्रहार कर, मैं रावण हूँ, फिसने मुझे जीता, मैंने धनदको भी यहाँसे वहाँ तक देख लिया है" ||१-८॥ ___ घत्ता-ऐसा कहते हुए और प्रहार करते हुए उसने सारथी सहित महारथको छिन्न-भिन्न कर दिया। चारों ओर खड़े हुए हजारों बन्दीजनोंने उसके यशको चारों दिशाओंमें फैला दिया ॥९॥ [५] जब माहेश्वरपुरका राजा रथविहीन कर दिया गया, तो वह एक पल में मदोन्मत्त गजेन्द्रपर सवार हो गया, मानो
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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