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________________ बारहमासीय बारहवीं सन्धि अपने सिंहासनपर बैठा हुआ, विशालनयन रावण पूछता है-"अरे मनुष्यो और विद्याधरो, बताओ आज भी कोई शत्रु है ?" [१] यह सुनकर अपने शिररूपी शिखरपर दोनों हाथ चढ़ाकर एक आदमी बोला,"परमेश्वर ! चन्द्रोदर नामक अतुल छलशाली दुष्ट खल अजेय है । वह इन्द्रकी सेवा करते हुए, पाताल लंकामें प्रवेश कर रहता है।" तब एक दूसरेने इसका प्रतिवाद किया, "इन्द्र और चन्द्रोदर क्या है ? ऋक्षरजके पुत्र नील और नल अत्यन्त प्रबल सुने जाते हैं।" एक औरने कहा, "मैं बताता हूँ यदि अगल-बगलसे मुझपर आघात न हो। किष्किन्धापुरीमें गजझुण्डके समान हाथवाला, सूर्यरजका पुत्र बाली है। उसके पास जो कण्ठा (1) मैंने देखा है, वह त्रिभुक्नमें किसी दूसरे आदमोके पास नहीं है। ॥१-८॥ ___घता--अरुण ( सूर्य ) अपना रथ और घोड़े जोतकर एक योजन भी नहीं जा पाता कि तबतक वह मेरुकी प्रदक्षिणा देकर और जिनबरको वन्दना करके वापस आ जाता है ? ॥५॥ [२] उसके पास जो सेना है, वह इन्द्र के पास भी नहीं है, कुबेर, वरुण और चन्द्रके पास भी नहीं। अमर्षसे भरकर वह सुमेरु पर्वतको चलायमान कर सकता है। उसकी तुलनामें दूसरे राजा तृणके समान है । कभी वह कैलास पर्वतपर गया था। वहाँ उसने सम्यग्दर्शन नामका व्रत लिया है कि 'विशुद्धमति निर्मन्ध मुनिको छोड़कर और किसी इन्द्रको नमस्कार नहीं करूंगा।' उसे इस प्रकार दृढ़ देखकर, पिता सूर्यरजने प्रवज्या ग्रहण कर ली, यह सोचकर, (या इस डरसे) कि मेरा किसी कारण दशानन
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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