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पउमचरित
अवसु ण इमु घडद । कइयंसिउ : अम्झहुँ भिड ॥ ॥ सिारकण्ठ मितस्य । राणु सिएहि कइय १८॥
धत्ता अहवइ वापर पि सुरवर-प्पर वि रत्तुप्पल-दल-णपणहों। तासया वि सुहब जा समर-जमा गड णिएन्ति दहावरणहाँ ॥९॥
[1] वालि-सल्लु हियवर धरेंवि । तो रावणु अण्ण योल्ल करें वि ॥१॥ गड एक-दिवसें सुर सुन्दरिह। जा भवहरणेण तणूरिहें ॥१॥ वा हर वि णीय कुल-भूसणे हि । चन्दणहि ह(?)रिय खर-दूसणेहि णासम्त णिवि सहोपरण। जयरेणाकारोदएण ॥४॥
उबरें छुई वि रक्खिय-सरण किय(1)नहि मि चन्दोवर-मरमु ।।॥ विणिवाइज जत्थणे में भिड । जो बुकिङ सो सं वारु गिड ।।६।। कुते सम्गड जं स्यणियर-वलु। रह-तुरय-णाय-णरचर-पवलु ।।७।। भलहन्तु चारु त णिप्पसा गा वह बि पढीषउ णिय-णयहाा।
घत्ता छुनु छुडु दहवयणु परितुद-मणु किर स-कळत्तर आवइ । उम्मण-दुम्मणा असुहारणउ णिय-धरु ताम बिहावइ ।।१।।
सुरमाणे केण वि वरित । खर-दूसण-कण्णा -दुरुचरिउ ||3|| अश्यक श्रायम्विर-णयणु । कु लगइ स-रहसु दहश्रयणु ॥३॥ करें धरिंज ताम मन्दोधरिप। गं गङ्गा नाहु जवण-सरि ।।३।। 'परमेसर कहो विग अपणिय । जिह कग्ण तम पर-मायणिय ||४|| एक करवाल-भय हरहुँ । चउदह सहास विजाहरहुँ ।।५।। जइ माण-घडीचा होन्ति पुणु। तो घरें अच्चम्तिएँ कवणु गुणु ॥३॥