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पटमचारिस
[१२. वारहमो संधि
पमणइ दहवयणु दीहर-णयणु णिय-अस्थाणे णिविट्ठउ ! 'कहहों कहीं गरहों विजाहरहों भज वि कवणु अणिहर'
!
तं णिमुवि जम्पड़ को दि णरु । सिर-सिंहर पदाधिय उमय-करू ११11 'परमेसर दुजाउ दुटु खलु । चन्दीवरु णाम अतुल-पलु ॥२॥ सो इन्दहों तणिय फेर करवि पायारल-मत थिउ पइस दि' ॥३॥ अवर दीजिरवरेंग;
दोपरे || सुवन्ति कुमार अण्ण पवल ।। उच्छुत्यहाँ जम्दण णीळ-णक'॥५॥ अण्णे धुञ्चत् 'कहामि । दो-पासिउ जहण प्राय झहमि॥६॥ किचिपुरिहिं करि-पवर-भुउ।। णामण वालि सूराय-सुउ ॥1 जा पारिहछि मई दिट्ठ सहाँ। सा तिहुयणे गउ भणहों णाहाँ८
घसा रहु बाई वि अझणु हय हणे नि पुणु जा जोपणु विण पावइ । ता मे रुहें भवि जिणवह पर्व वि सहि जे पदीवड़ भावह ।।१॥
तहों गं वलु संण पुरन्दरहों। ण कुत्ररहों वरुणहों ससहरहों ॥१॥ मरु वि टावह वहामरिसु। तहों अपणु णराहिउ विण-सरिसु ॥२५ कहलास-महीहरु कहि मि गड। सहि सम्मउ णार्मे लहड वउ ||३H णिमाम्धु मुएवि विसुन्छ-मह। अण्णही इम्यहाँ वि नाहि म॥४॥ संतेहउ पेक्स्वेचि गीत-भड । पग्वज लेवि गड पूरा ॥५॥ 'मा होसइ केण वि कारणेग। समरमाणु समड दसाणण' ॥६॥