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________________ 1 गरमी संधि U तरह पीली, अलसीके फूलकी तरह, लाल सूँड़ और मुख । पाँच मंगलावत ( मस्तक तालु आदि ) से युक्त और मदका घर है। चक्र, कुम्भ, ध्वज आदिकी रेखाओंसे युक्त उसका कुम्भस्थल उत्तम युवतीके स्तनोंके समान है। शरीर पुलकित है, गण्डस्थलसे मद झरता है, कन्धे ऊँचे हैं, पिछला हिस्सा सुडौल है, उसके श्रीस नख है, उसका मद परागकी तरह सुगन्धित है । चापषंशीय, स्थिर मांसवाला और विशाल उदर ! उसका शरीर, दाँत, सूँड़ और पूँछ लम्बी है || १८|| १७७ बच्चा - इस प्रकार जो नामरात अनेक लक्षण गिनाये गये हैं, वे सब कुछ चार कम चौदह सौ उस हाथी के प्रदेशमें हैं॥९॥ [५] यह सुनकर रावण हर्षित हो गया । भीतर न समाने के कारण वह पुलक रूप में प्रकट हो रहा था । वह बोला, “यदि मैं भद्रस्तिको अपने वशमें नहीं करता तो अपने पिताके ऊपर तलवारसे आक्रमण करूँ ?" यह कहकर वह सेनासहित वहाँके लिए दौड़ा, और शीघ्र ही उस प्रदेशमें जा पहुँचा । अपनी घूरती हुई आँखसे उसे देखकर, रात्रणने केवलं प्रहस्तका उपहास किया, "मैं इस प्रचण्ड हाथीको केवल विलासिनीके रूपकी तरह सुन्दर जानता हूँ, मैं गजेन्द्रके कुम्भस्थलको केवल बिलासिनीका सघन स्वनमण्डल समझता हूँ, उसके अकलंक दाँतोंको केवल सुन्दर कर्णावतंस मानता हूँ, उसपर घूमते हुए भ्रमरकुलको मैं केवल विलासिनीके निरन्तर लहराते हुए बालोंके रूपमें जानता हूँ ||१८|| घसा - मैं जानता हूँ कि हाथी के कन्धेपर चढ़ना अत्यन्त खतरनाक होता है, फिर भी हे प्रहस्त! मेरा मन नये सुरितभावसे उलित हो रहा है" || ९ ||
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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