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पठमचरित
पा-मालावसु मयालउ ।। बट्ट-सरहि-यणय-कुम्मस्थल । उन्जय-कबरु सूयर-पछलु ।। चाय क्षु यिर-भंसु यिराब
चर-कुम्भ-धय-छत्त-रिहासउ ॥५॥ पुलय-सरोरु गलिय-नापडत्थलु ॥६॥ बोम-पहरु सुभ्रध-मय-परिमल।।॥ जानकर-पुच्छ-पईहरू ॥८॥
एम भणेाई पक्खणई हरिध-पएसई सबहु मि
पत्ता किंगगियई पाम-विहूणाई। चउदह-सयह घडरूणाई' ॥९॥
• संणिसुमेवि दसाणणु हरिसिङ । उ म मन्नु रोमञ्ज व दरिसित ॥१॥ 'जइ तं भाव-हस्थि गाउ साहमि । तो जणपोवरि मसि पर वाहमि'॥ एउ भणेवि सम्मेण्णु पधाइड । तं पएसु सहससि पराइड ॥३॥ गयवइ णिए वि विरोलिय-गयणे । हसिउ पहरथु णवर दह-क्यणे ।।३।। 'हड जाणमि पचण्ड तम्बेरमु । णवर विलासिणि-रूप मणौरमु॥५॥ हउँ जामि गइन्द-कुम्मस्थल । णवर विलासिणि घण-थण-मण्डलु॥५॥ जाणमि सु-विसाणहं श्र-कल कई । णवर पसण्ण-कण्ण-
ताई ॥७॥ हउँ जाणमि भमन्ति भमर-उलई । णवर मिस्तर-पेलिय-कुरुलह ॥८॥
घत्ता
जाणमि करि-खन्धारुहणु णवर पहस्थ मज्जु मणहाँ
अन्तु होइ मय-भासुरः । उन्धहह णवश्लु णाई सुरउ' ||९५