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________________ मनमो संधि १.१ रात । रथ, गज, अश्व, भ्वजचिह्न, छत्र, जम्पान विमान और राजाओंके शरीरोंमें घर-घर करते हुए तीर ऐसे जा लगे मानो धनवान् आदमीके पीछे चापलूस लोग लगे हों । यक्षेन्द्र धनदने भी तीरोंसे तीरोंको काटा वैसे ही, जैसे मुनिवर आती हुई कपार्योको काट देते हैं । धनुप गिर गये और छत्र तथा दण्ड भी जा पड़े। उसने दशमुखके रथ के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तब वह दुसरे रथपर चढ़कर राजासे भिड़ा, मानो वनका आघात गिरि समूहसे मिला हो । धनद् भिन्दिपाल अस्त्रसे छातीमें आहत हो गया । और दिनका अन्त होनेपर सूर्यकी तरह लुढ़क गया।।१-८|| पत्ता-वैश्नवणके सामन्त इसे उठाकर ले गये, दशाननने विजयको घोषणा कर दी। तब कुम्भकर्ण क्रुद्ध हो उठा, "हे पाप, तू जीते जी कहाँ जाता है" ||२|| [१२] "इसके समान कौन क्षत्री है, भागते हुए भी इसका घात किया जाये, जिससे सैकड़ों वर्षोंका बैर मिट जाये।" यई कहते हुए व हाथ में लेकर कुम्भकर्ण जैसे ही दौड़ता है, वैसे ही विभीषणने उसे रोक लिया, यह कहकर कि “कायर मनुष्यको मारनेसे क्या ?' उसे मारना चाहिए, जो फिरसे प्रहार करता है, क्या साँप निर्विष होकर भी जिन्दा न रहे ! वह बेचारा अपने प्राण लेकर नष्ट हो रहा है ।" तब कुम्भकर्ण मत्सर छोड़ कर चुप हो गया। इसके बीच वैश्रवणका सुकलत्रकी तरह मनको अच्छा लगनेवाला पुष्पक-चिमान दिखाई दिया। नराधिप रावण शंका छोड़कर उसपर चढ़ गया, कितने ही लोगोंको उसने लंका भेज दिया। वह स्वयं जो-जो भी चण्ड था, उसके पास कालदण्ड की तरह पहुंचा ।।१-८॥ __ पत्ता-दुर्दमनीयोंका दमन करता हुआ और अपने बान्धव और स्वजनोंसे घिरा हुआ राक्षस राषाण, इन्द्रकी तरह लीलापूर्वक घूमने लगा, सैकड़ों देशोंका उपभोग करता हुआ ॥२॥.
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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