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परमवरित
[११. एगारहमो संधि] पुष्फ-विमाणारूतुएंण दहवयाणे धवल-विसालाई । णं घण-विन्दई अ-सलिलई टिदुइ हरिपेण-जिणाला ॥१॥
सोगदवाहण-वंस-पईथे । पुच्छिा पुणु सुमाकि दहीवें ॥१॥ 'अहो अहो ताय ताय ससि-धवलहूँ । एथइँ किंण जलुग्गय-कमलई ॥२॥ किं हिम-सिहरह साउँ वि मुक्कई । किं णक्खत्तई थाणहाँ चुक्का ॥३|| दगगुरम-धवल-पुण्डरियई। कि काह मि मिसुपरि धरियई ॥४॥ अब्भारम्म-विवजिय-गमई। किं भूमियले गाई सुमनभई ॥५॥ किय-मङ्गल-सिकार-महास। किं श्रावापियाई कलहंसह ॥६॥ जसु सम्बनाई खपदवि खण्डे नि । किय मउ कोधि पडीउ वि।। कामिणि-वयणोहामिय-छायहूँ। किय ससि-सयई मिलेपिणु भाय ई॥४
पत्ता
कहइ सुमादि दसाणणहाँ जिग-मयण सहमकियाई
'जण-णयणाणन्द-अणेराह । पया इरिसेणही कराई ॥५॥
[२.] अट्टाझियह म महि सिद्धी पत्र-णिहि-वउदह रयण-समिद्धी । ॥ पदिकाएँ दिष महारह-कारणे जायेथि जगणि-दुक्ख गड तक्मणे ॥२॥ वीयएँ तावस-मवणु पराइट। मरणावलिह मयण-जरु लाइउ ॥३॥ तड्यएँ सिन्धुणयरे सुपरसम्पाउ | हरिष जिणेपिणु लइयड कण्ण॥३॥ वेगमईएँ चदस्थऍ हारिउ । जयचन्द हिय वारे पइसारित' ॥५॥ परमें गङ्गाहर-मदिह-रण । तहि उप्पण्णु चक्क नहीं स-स्यणु ॥६॥