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पउमचरिउ
सन्दर्णे हएँ गएँ भय- सिन्धे छत्ते । जस्पार्णे विमाणें गरिन्द-गतं ॥३॥
भवन्तुएँ
में पिसुन जेम ॥४॥ सुणिवरेण कसाय व कमाण ||५|| दहमुह र किच सय स्वण्डड-खण्डु ॥ ६॥ णं गिरि-संघायों कुलिस बाद ॥७॥ ओलु माणु व्हसिएँ य दिवलें ॥ ८ ॥
थरथरहरन्त सर कथा केम । जण वि इस वाणेहिं घाण । धणु पाडि पाडि छन्त दण्डु | अपण चडेपिणु भिडिउ राउ | उ भणड मिडियाले उससे
घन्ता
जिउ यि सामन्तेंहि वसवणु विजय दमाणणें घुट्ठर । 'कहि जाहि पात्र जीवन्तु महु' कुम्मयष्णु भारु ॥१५॥
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ब्राजइ णासन्तोषि सत्तु ॥१॥ किर जाम पचाव सूपाणि ॥२॥ 'किं कायर र विद्धंसणेण ॥३॥ किं तर म जीव गिबिसी वि ॥४॥ थिङ भाशुकण्णु मच्छरु मुवि ॥५॥ सु-कलत्तु व पुष्क- विमाणु दिडु || ६ || । पट्टविय पसाहा के वि क ॥ ७ ॥ । तहों वहीं दुकड़ जिह काळ-दुण्डु ॥ ८ ॥ धत्ता
'आएं समाणु किर कपणु खलु । जं फिल्इ जम्म-सयाएँ काणि' | rase aft विहीण | सो हम्म जो पहण पुवि । णास वराड नियन्याण लेवि' । एयन्तरे वसवणहाँ मणिट् दु । चिडि राहिङ मुवि मक अणु पुणु जो जो को वि चण्
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णिय बन्धव-ससणेंहि परियरिउ दणुवह दुदम-दमन्त । आहिण्डर ठीकऍ इन्दु जिह देस-स यंभु अन्त ॥९॥