SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णमो संधि १५३ [९] यह सुनकर जम्बूद्वीपका स्वामी वह यक्ष ऐस जल उठा मानो अग्निज्वालाओं का समूह हो। ऐसा कौन-सा अविचल व्यक्ति है जो मुझसे बाहर रहकर दुनिया में जीवित है ?" उनके स्थानके सामने जाकर उसने रत्नायके पुत्र रावणको देखा । वह बोला, "अरे नये संन्यासियो, किसका ध्यान करते हो, किस देव की स्तुति कर रहे हो ?" जब उन्होंने एक भी उत्तर नहीं दिया, तो फिर उस यक्षकी क्रोधज्वाला भड़क उठी। उसने भयंकर उपसर्ग करना शुरू कर दिया, वह स्वयं अनेक रूपों में फैलने लगा । विषदन्त विषधर और अजगर, शार्दूल सिंह और कुंजर, गज-भूत-पिशाच, राक्षस गिरि-पवन-अग्नि और पावस से ॥१-८|| पत्ता -- उसने दसों दिशाओंमें अन्धकार फैला दिया । रुककर, जीतकर, उछलकर उसने उपसर्ग किया, परन्तु वह वैसे ही व्यर्थ गया, जैसे गिरिराजके ऊपर वर्षाऋतु व्यर्थ जाती है ॥१९॥ [१०] जब वह यक्ष उनका चित्त विचलित न कर सका तो उसने तुरन्त दूसरी माया धारण की। उसने उनके सभी बन्धुजनोंको विषवमन और करुण विलाप करते हुए दिखाया । नमें कोड़ों आघात से पीटे जाते हुए और क्षण-क्षण में गिरतेपड़ते हुए । रत्नाश्रव, कैकशी और चन्द्रनखा पीटी जा रही हैं, यदि हमें तुम कुछ नहीं गिनते, तो फिर कहो क्या प्रतिपक्षकी शरण में जायें ? शत्रु भारता है और पीछे लगा हुआ है, ऐ पुत्र, बचाओ | क्या वह अपना पुरुषार्थ भूल गये, जिससे नौमुखका कण्ठा तुमने धारण किया था। अरे भानुकर्ण, तुम अपना शौर्य धारण करो, इसका सिर तोड़ दो जिससे वह धूलसे जा मिले। अरे विभीषण, जाते हुए इन्हें पकड़ो, बनमें ये म्लेच्छके द्वारा पीटे जा रहे हैं ।। १-८॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy