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परमपरिज
वत्ता
अरें पुस्तहों पर परिमल किय जं कालिय पालिय नविय । सी शिष्फलु सलु किले गए जिह पात्रों धम्मु विवि
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जं कंण विउ साहारियउ |
तं तिणि वि जक्लै मारिय ||१||
I
विछितो वि नहीं खाणु थिरु अाएँ पत्ति अविचल मणहुँ । वं निवि सी रहिराखणज । दिई सुइँ थिर जोया हूँ । सिर-क्रमकई ताह मि केराई । रावणहीँ गम्पि दरिसावियहुँ ।
पुणु तिहि मि जगहुँ निसानियत । सिव-साप-सिवाले हि खावियद्ध॥२॥ माया-रायण करेंवि सिरु ॥३॥ माइहिँ रविकरण - विहीसणहूँ ||४|| ते झाणी चयि मणामणउ ||५|| ईसीसि परायिहूँ लोयन हूँ ॥ ६ ॥ उवणाएँविदुक्ल-जमेराई ॥ * ॥ पउम चाल मेलाषियहूँ ॥ ८ ॥
घत्ता
जं एम सि रावणु अचलु थिउ तं देवहिं साहुकारु किउ । विजहुँ सहासु उप्पण्णु किह तिस्थपरहों केवक ाशु जिह ॥९॥
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आगया कहन्ती महाकालिणी । गण-संचाकिणी माणु-परिमालिणी ॥ ३ कालि कोमारि वाराहि माईसरी । घोर-वीरासणी जोगखोगेसरी ॥२॥ सोमणी रयण वम्भाणि इन्द्राणी । अणिस हिमति पष्णति कमाइणी ॥३ हणि उच्चादिणी धम्मणी मोहणी । बइरि-विसणी भुषण-संखोहणी ॥४॥ वारुणी पाणी भूमि - गिरि-दारिणी । काम- सुह- दाइणी वन्ध-वह-कारिणी ॥५ स- पच्छायणी सम्व-आकरिखिणी। विजय जय जिम्मिणीसम्ब-मय-पासणी सत्ति-संवाहिणी कुद्धि भवठीयणी । श्ररिंग जल- थम्मणी विन्दुणी भिन्दणी । भासुरी रक्सी वारुणी वरिणी । दारुणी दुविंगकारा यदुद्दरिणी ॥ ८ ॥