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________________ 'पउमचरिउ' और 'रामचरितमानस' कुछ लोग समझते हैं | अपने मानमरूपकमें वह स्पष्ट करते हैं— कवि मानव की मूल समस्या यह है कि प्रभुके साक्षात् हृदय में विद्यमान होते हुए भी मनुष्य दीन-दुखी क्यों है ? पुराणोंके समुद्रसे वाष्पोंके रूपमें जो विचाररूपी जलसाघुरूपी मे रूपमें जमा हो गया था, वही बरसकर जनमानस में स्थिर होकर पुराना हो गया। ऋत्रिकी बुद्धि उसमें अवगाहन करती है, हृदय आनम्द से जल्लसित हो उठता है और वही काव्यरूपी सरिता के रूप में प्रवाहित हो उठता है, लोकमत और वैश्मत के दोनों तटों को छूती हुई उसकी यह रामकात्र्वरूपी सरिता बहकर अन्तमें रामयज्ञ महासमुद्र में जा मिलती है । और इस प्रकार कविको काव्ययात्रा उसके लिए तीर्थयात्रा है। पहले काण्डमें परम्परा और प्रांतोंके उल्लेख के बाद, रामजन्म के उद्देश्यों पर प्रकाश डालता है। फिर रामभकिके सैद्धान्तिक प्रतिपादनक बाद उल्लेख है कि दशरथ के चार पुत्र हुए। विश्वामित्र अनुरोधपर दशर राम-लक्ष्मणको यज्ञकी रक्षा के लिए भेज देते हैं, वहां राम धनुषयज्ञ में भाग लेते हैं, और सीतासे उनका विवाह होता है । रामको राजगद्दी देनेपर कैकेयी अपने वर माँग लेती है, फलस्वरूप रामको १४ वर्षोंका बनवास मिलता है। भरत ननिहाल से लौटता है और अयोध्या में सन्नाटा देखकर हैरान हो उठता है । बादमें असली बाल मालूम होनेपर वह रामको मनाने जाता हूँ । अन्त में रामकी चरणपादुकाएँ लेकर वह राजकाज करने लगता है । जयन्त के प्रसंगके बाद राम विविध सुनियोंसे भेंट करते हुए आगे बढ़ते हैं। रावण की बहन सूर्पणखा राम-लक्ष्मणमे अनुचित प्रस्ताव रखती है । लक्ष्मण उसके नाक-कान काट लेते हैं। इस घटना से उनके विरोधको सम्भावना बढ़ जाती है। राम सीताका अग्निप्रवेश करा देते हैं, वहाँ केवल छाया सोता रह जाती है। स्वयंमृग के छनसे रावण छाया सोलाका अपहरण करता है। इससे राम दुखी होते हैं । शवरी उन्हें सुग्रीव से मिलने की सलाह देती है। राम बालीका वधकर सुग्रीवको पत्नी तारा उसे दिलवाते है । सुग्रीव के कहने पर हनुमान् सीताका पता लगाते हैं। हनुमान् सीतां भेंट कर वापस आता है । मन्दोदरी रावणको समझाती है। विभोपण अपमानित २ १७
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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