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________________ उमरि १५ उसक शवको कन्दार लादकर कहती हैं । अन्तमें आत्मबोध होनेपर दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं । तपकर मोक्ष प्राप्त करते हैं । तुलसी और मानस तुलसीदास १६वीं सदी में हुए । इनका बचपन उपेक्षा, कठिनाई और संकट में बीता । पिताका नाम आत्माराम दुबे या और माताका हुलसी । इन्होंने राजापुर, काशी और अयोध्या में नित्रास किया। उन्हें रामकथा सूकर क्षेत्रमें सुनने को मिली 1 तुलसीका प्रामाणिक इतिवृत्त न मिलनेपर उनके विषय में तरह-तरहको किंवदन्तियाँ हैं, जिनका यहाँ उल्लेख अनावश्यक है। कहते हैं कि एक बार रासुराल पहुँचनेपर इनकी पत्नी रत्नावली इन्हें झिड़क देतो है जिससे कविको आत्मबोध होता है और वह राममन्ति में लग जाता हूँ। उनका मन रामके लोककल्याणकारी चरितमें रभ गया, उन्होंने निश्चय कर लिया कि में रामके चरित्र की लोकमानस में प्रतिष्ठा करूंगा। तुलसीके अनुसार रामकथा की परम्परा अगस्त मुनिसे प्रारम्भ होती है । वह यह कथा शिवको सुनाते हैं, शिव पार्वतीको, और याद में काकभुशुण्डीको । उनसे यह कथा याशवल्क्यको मिलती है और उनसे भारद्वाजको कवि इसके अलावा उन स्त्रोतों का उल्लेख करता है जिन्होंने उसके कथाकाव्यको पुष्ट बनाया। मुख्यरूपसे वह आदिकवि और हनुमान्का उल्लेख करता है, क्योंकि एक रामकथाका कवि है और दूसरा रामभक्तिका प्रतीक | तुलसीके लिए दोनों अपरिहार्य है । कवि सन्त समाजको चलताफिरला तीर्थराज कहता है जिनमें रामभक्तिरूपी गंगा, ब्रह्मविद्याकी सरस्वती और जीवन की विधि निषेधमयी प्रवृत्तियों की यमुनाका संगम । 1 1 . दूसरे शब्दोंमें, "ब्रह्मविद्याको आधार मानकर प्रवृत्तिनिवृत्तिका विचार रनेवाला सच्वा रामभक्त ही वास्तविक सीर्थराज है ।" रामचरित मानस - बुनावट समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण संकेत है । कविने प्राकृतजन प्राकृत कवियों का उल्लेख किया है । परन्तु यहाँ उनका प्राकृत से श्लोकिकजन या कविस है, न कि प्राकृतभाषा के कवि जैसा कि >
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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