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भट्ठमो संधि
१३. ख्याल न रखते हुए, 'शत्रु कहाँ गया ? यह कहते हुए करतलसे प्रहार करते हैं, अश्व, ध्यज और सारथि चूर-चूर हो गये। केवल महारथियोंके हाथमें चक बाकी बधा। उस अवसरपर, रथनूपुर श्रेष्ठ सहस्रारके ऊपर माल्यवन्त दौड़ा, सूर्यरवने सोमको युद्धमें ललकारा, ऋक्षराजने बरुणको हकारा। किष्किन्धने यमको, सुमालिने धनदको, सुकेशने पवनको, मालिने इन्द्रको ॥१-८॥
घसा (मालि कहता है) "इतने समय तक मैं नहीं समझ सका कि तुम किस इन्द्रके इन्द्र हो, क्या तुम वाह इन्द्र हो जो रुण्ड-मुण्डों और जिलाओंके द्वारा इन्द्रपथमें रमण करता है, "||२||
यह सुनकर इन्द्रने एतिको प्रेरित किया, जैसे वह झरता हुआ कुलपर्वत हो । मालि और इन्द्र आपसमें भिड़ गये, दोनोंमें भयंकर महायुद्ध हुआ। शेष योद्धाओंने युद्ध छोड़ दिया, ने अपने नेत्र स्थिर करके रह गये । वे इस प्रकार देखने लगे जैसे इन्द्रजालको देखा जाता है, रामसने राक्षस विद्याका चिन्तन किया जो भीम महाभीम द्वारा दी गयी थी, और जो उसे कुल परम्परा से मिली थी। अपना मुख विकराल बनाये वह दौड़ी, बह, इतनी बढ़ी कि आकाशतलमें नहीं समा सकी। वरुण, पवन, यम और कुबेर सोच में पड़ गये, इन्द्र के दूत उसके पास पहुँचे। उन्होंने कहा, “दूतने राजसभामें ठीक ही कहा था कि मालि युद्धमें अजेय है ॥१-दा। ___घत्ता-उनके प्रस्तावपर इन्द्रने शीघ्र माहेन्द्र विद्याका स्मरण किया, वह सूर्यकान्त और चन्द्रकान्तकी तरह उससे चौगुनी बढ़ती चली गयी ॥२१॥
[८] माहेन्द्र विद्याको देखकर सुमालि मालिका मुख देखकर कहता है, "उस समय तुमने हमारा कहना नहीं भाना, अब लो