________________
१५८
पठमधारित तं णिसुणे वि पलम्च-भुय-दालें । अमरिस-कुपण रण माळे ॥३॥ पायय-धारण-अमगेय स्थई । मुफई तिणि मि गयह णिस्त्थई ॥१॥ जिह अण्णाण-
कतिपयमाई : गोगामें परमरपा । जिह उवयार-सयई अकुहीणएँ। वयइँ जेम चारित्त-विहीणएँ ॥६॥ गम्पि परजणु मिसिल पक्षणे। वरुणहो वरुणु हुवासु हुासणें ॥७|| फसिट पुरन्दरेण 'अरें मरणव । देव-समाण होम्ति किं दाणव' ॥६॥
घसा
मणइ मालि 'को देउ तुहुँ बं बन्धहि ओहदहि वि
पल पउरु सु स्थलु पिरिक्खियउ । इन्दयाल पर सिक्खियड' ॥५॥
सं शिसुणेषि वयशु सुरराएँ। विद्धु पिडालें मालि पाराएँ ||३॥ लहु उत्पावि घिउ परिन्दें। गाइँ बरसु मत्त-गहन्दे ॥२॥ सहसा रुहिरायम्बिरु दीसिन। णं मयालु सिन्दूर-विहूसिउ ॥३॥ वाम-पाणि वणे देवि भवन्तिएँ। भिषणु णिवाले सुराहिउ सप्सिएँ ३४॥ बिहलासु श्रोणक महीयलें। कलथल घु? रक्ख-वाणव-व ॥५|| मालि सुमालि साहुकारिध। 'पई लोम्ताएँ जिम-वंसुद्धारित' ।। उछि मुछु धाः सहसतर। एन्वळ धरवि ण सबिउ रखें ||७| सिरु पाडेवि रसायले पडियद। कह बि ण कुम्म-बी भम्मिडियउ॥4॥
क्यणु मदम ण वीसरिड घे-वारस भइराषयहाँ
पत्ता भानिउ कबन्धु रोसावियउ । कुम्भस्थले भसिवरु वाहियर ॥९॥