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संसूरिय तुरङ्ग धय- सारहि ।
तहि अक्सरे रहनेडर-सारहों । सूररगुण सोमु रणे खारिउ ।
पउमचरि
-सेस थिय णवर महारहि ||५||
धाइउ मल्कबन्तु सहसा
||६||
उरण वरुणु हक्कारिउ ॥ ७ ॥
कलिं ॥4॥
घन्ता
'एत्ति कालु ण वुझिय उ रण्डे हि सुण्डेहि जिम्भिऍहि
तुहुँ कबहुँ इन्दहुँ इन्दु कहें। किं जो सो रम्महि इदव हें ||५||
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तं शिसुर्णेनि घोइड भरावउ | मालि- - पुरन्दर मिडिय परोप्पर । गुजाइँ सेस गरे हिं परिचतहूँ । इन्दयालु जिह सिंह जोइ आइ । भीम महाभीमें हि जा दिण्णी । साविकक वरण उदाइ चिन्तित वरण-पण जमव दुएं खुत्तु आस राङ्गणें ।
वह जिझरन्तु कुळ-पावर ॥१॥ विहि मि महाहउ बाउ मचकुरु ॥१२॥ थिय पढिथिराहें करेष्पिणुत ॥३॥ रक्खें - विज चिन्तिज्जइ ॥४॥ गोत्त-परम्पराएं अवइन्णी ॥५॥ परिवद्धिय गयणमण माध्य ॥ ६॥ हि । 'पत्तु इन्दु चरिए हिं अध्यण हिं ॥७॥ दुज्जड माफि होइ समरङ्ग ॥८॥
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घत्ता
राहि परथावें पुरन्दरेंग
माहिन्द-विज्ज हु संभरिय |
यि तहें विचणिय रविकन्सिए ससि कन्ति व हरिय ॥१९॥
माहिन्द - विन अबलोऍषि | 'यण किउ महारज बुत ।
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भइ सुभाष महि-मुहु जोऍषि ॥१॥ एवहिं आयउ कालु तिड ॥ २५