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________________ भट्टमी संधि जिसकी दासीकी तरह आज्ञाकारिणी है। उसके साथ विरोध करना ठीक नहीं।" इन शब्दोंसे इन्द्र क्रुद्ध हो गया, 'दूत हो' यह सोचकर तुम्हें छोड़ दिया, नहीं तो अभी तक यमकी दाढ़के भीतर चले जाते ॥१८॥ ___घता-कौन वह लंकाका अधिपति, कौन तुम, और किससे सन्धि ? युद्धमें दोनोंमें-से जो जीवित रहेगा, समस्त धरती उसीकी होगी ।।९।। [५] दुर्वचन और अपमानसे आइत मालिके दूत अपमानित होकर चले आये। जिसके पास सुरसेना है, हाथमें वन है और पाया की सवारी है ऐसा इन्द भरद्ध होता है, जिसका शरीर ही अस्त्र है, धूम ध्वज है, जलका शत्रु मेष जिसका आसन है, ऐसा अग्नि सन्नद्ध होता है, दण्डसे भयंकर महिपपर बैठा हुश्रा इन्द्रका अनुचर यम सन्नद्ध होता है, मुद्गर धारण करने. वाला रीळपर आरूद रणांगणमें कठोर नैऋत्य तैयार होता है, जिसके अधर स्फुरित है, और जो हाथमें शक्ति धारण करता है, ऐसे पुष्प विमानमें आरूढ़ कुबेर तैयारी करता है । वृषभ जिसका आसन है, जो हाथमें त्रिशूल लिये है, ऐसा शत्रुसेनाको सतानेवाला ईशान सम्बद्ध होता है, सिंहगामी, हाथमें भाला लिये हुए, शशिपुरका स्वामी चन्द्रमा तैयार होता है ॥१-१०॥ __ घत्ता-जो लोग ढीले पोले थे, उन्हें भी असमय उत्साइसे रोमांच हो आया, एक-दूसरेके ध्वज-चिह्न देखकर योद्धाओंके कवच तड़क गये ।।११।। [६] तब सबसे पहले क्रोधसे भरी हुई दोनों ओरकी अग्रिम सेनाएँ आपसमें भिड़ गयीं । गजोंके वक्ष, सिर, मुख, कन्धे नष्ट हो चुके थे, उनका पिछला भाग शेष रह गया था। फिर भी वे पूल उठाकर प्रतिप्रहार कर रहे थे, जैसे यह सोचते हुए कि हमारा अगला भाग कहाँ गया ? योद्धा भी अपने पेट और उरस्थलका
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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