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पउमचरित तेण समाणु विरोहु मसुन्दर'। भापहि धयणे हिं कुविउ पुरन्दरा॥ 'बूड भणेवि तेण तु चुका। तो जम-दन्तन्तरु तुका ॥८॥
को सो लक-पुरादिवइ जो जीवेसह विहि मि रण
घत्ता
को हुँ किर सन्धि कहो सणिय । महिणीसाषण्ण तहो तणिय ॥५॥
गय ते मालि-दूध णिभरिछय । दुन्वयणावमाण-परिहस्थिय ।।१॥ सगणनाइ सुरिन्दु सुर-साहणु। कुटिस-पाणि भइरावयवाहणु ॥२॥ समाजमाइ तणु-हेश आल। धूमद्धउ कुयारि मेसासणु ॥३॥ सम्णज्मद जम दण्ड-मयार। महिसारूतु पुरन्दर-किक ॥६॥ लण्णजमइ परिउ मोग्गर-धरु । रिच्छारूतु रणकणे धुनुरु ॥५॥ लग्णनइ वरुणु लि दुईसणु। णागवास-कर करिमयरामणु ॥६॥ सपणमाह मिग-गमणु समीरण | सरुवर-पवस्तगामिय-पहरणु ॥७॥ सपणमाइ कुबेरु फुरियाहरु पुष्फ-
विणारूढ़ सति-करु ८३ सपणजमाइ ईसाणु विसासणु । सूल-पाणि पर-बल-संतासणु ॥९॥ सम्णजाइ पचाणण-गामिड । कुन्त-पाणि ससि ससिपुर-सामिड १०
पत्ता बाई वि दिल्लीहान्ताई ताइ मि रण-रस-गुलउपगयई । गिवि परोप्पर चिन्धाई सुहरहुँ कवयरे फुटेंवि गयह ॥११॥
साम परोप्पर हाघिद्धई। पढम भिडन्सरै अग्गिम-खम्भा ॥१॥ मुसुमूरिप-उर-सिर-मुह-कन्धर । परिलम-माअ-सेस थिय कुमार ॥२॥ पुरछुग्गीरिय परिपहरन्ति । 'कहिाय अग्गिम-माय' मन्ति व॥३॥ जोह विभमुणिय-जहर-उरस्थरू । 'कहिंगय रित' पहरन्ति व करपल