________________
भट्टमी संधि
उसने भयंकर रणभेरी बजषा दी। अनुचर सन्नद्ध होकर पहुँचने लगे। किष्किन्ध और उसका पुत्र दोनोंने रुष्ट होकर प्रस्थान किया ॥१-८॥ - घाता-उस समय मालि सुमालिका हार कर कहता है, "हे देव, देखिए कैसे दुर्निमित्त हो रहे हैं । सियार चिल्लाता है, कौआ आवाज कर रहा है ॥९॥
[३] नागिनोंसे क्षीण होती हुई पगडण्डी, और फेश खोलकर रोती हुई स्त्रीको देखिए । देखिए वसुन्धराका तल फाँप रहा है, जिसमें घर और देवकुलोंका समूह लोट-पोट हो रहा है। देखिए असमयमें महामेघ गरज रहे है, आकाशमें नंगे धड़ नाच रहे हैं। यह सुनकर उसका मुख मुड़ा। वह बोला, "वत्सवत्स, यदि शकुन ही बलवान् है, तो क्या यह सूठ है कि 'सब मरते हैं। देवको छोड़कर और कौन बलवान् है । यदि मनुष्यमें थोड़ा धैर्य हो, तो उसके पाससे लक्ष्मी और कीति नहीं हटती । ऐसा कहकर उसने प्रस्थान किया। विमानों और र्षके साथ सेना चल पड़ी ।।१-८ll
पत्ता--अश्वगज, रथवर और नरवर धरती और आकाशमें नहीं समाये । ऐसा दिखाई देता जैसे विन्ध्याचल से महामेघ उठे हों ।।९।।
[४] राक्षसके अभियानको यमकरणके समान सुनकर दोनों श्रेणियों के विद्याधर भागकर इन्द्र की शरण में चले गये। इसी अवसरपर मालिके महनीय बलवान् दूत बहाँ आये। उन्होंने कहा, "अरे अजान, रथनूपुरके राजा, तुम कर देकर सन्धि कर लो। युद्ध-प्रांगण में लंकानरेश अजेय है जिसने निर्यातको यमके मुखमें डाल दिया है, त्रिलोककी प्रिय राजलक्ष्मी,