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________________ १३९ पउमचरित देवाविय रण-भेरि भपकर। घर (1) सपणहें वि पराइय किएर ॥1 किकिन्धहाँ किकिम्वहाँ णदण | दिण्णु पयाणा वाहिय सन्दण ।।८॥ धत्ता 'गमणु ण सुग्नइ महु माहों' तं मालि सुमालि करें हि धरह । 'ऐक्खु देव युणिमिसाई सिष कम्पन पायसु करमरइ ॥१॥ पेक्खु कुहिणि विसहर-छिज्जती। मोकल-केस णारि रोवन्ती ॥१॥ पेक्यु फुरतज पामउ लोयण। पेक्खहि हिर-हाणु घस-मोयणु ॥२॥ पेक्सु वसुन्धरि-तलु HEIोलवर गे ॥६॥ पेक्लु भकाले महा-घणु गसिर । पाहें णास्तु कषाधु मलजिउ' ॥ तं णिसुणेवि वया तहाँ वलियउ । 'वष्य वजह सउणु जि पलिया५ तो किं मरइ सम्घु एउ अडियः । दह मुएवि अपणु को बलियड़ ॥६॥ छुड़ धीरत्ता होइ मणूसहों। लच्छि कीधि ओसरइ ण पाप्तहाँ' ॥७॥ एम मणेपिणु दिण्णु पयाणउ । चलिउ सेप्णु सरह स-विमाणड ॥८॥ घत्ता हय-नाय-हवर-परवरहिं महियल गयण ण माझ्यउ । दीसह विन्म-महोहरहों महउस्लु गाई उद्धाइयर ॥९॥ तं जमकरणहों अणुहरमाणड । उमग्र-सेवि-सामन्त पणट्ठा। तहि अवसर बलवन्त महाइय। 'अहाँ अहो सउर-पुर-राणा। दुजउ ककाहिउ समरक्षण। हाय-करिन्छ तरलोक-पियारी । णिसुणे वि रक्खहाँ तणउ पयाणउ॥३॥ मम्पिणु इन्दहाँ सरणें पइट्टा ॥२॥ मालिह केरा दूअ पराइय ।।३।। कम्पु देवि कर सन्धि भयाणा ॥७॥ कुछ जेण पिघाउ जमाणणे ॥५॥ दासि जेम जसु पैसणगारी ॥६॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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