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________________ अट्टमो संधि आँध संधि मालिके राज्य करनेपर सभी विद्याधर-मण्डल सिद्ध हो गये, उसी प्रकार जिस प्रकार सभी जल समुद्रकी ओर अभिमुख होते हैं। [१] उस अवसरपर इक्षिण श्रेणी में चूनेसे पुता हुआ सफेद रथनूपुर नगर था। उसके राजा सहस्रारकी विशाल नितम्योवाली, पीन-पयोधरा मानससुन्दरी नामकी पत्नी थी। जमके सुरश्रीसे सम्पूर्ण पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे इन्द्र कहकर पुकारते थे। उसका मन्त्री बृहस्पति, हाथी ऐरावत, सेनापत्ति भयानक हरिकेदा था। उसने पवन-कुवेर-वरुण-यम और चन्द्र सभी विद्याधरों और सुरचरोंको अपना बना लिया। उसके छच्चीस हजार नाटककार थे। कुरुज और धामनोंकी तो कोई गिनती नहीं थी। इन्द्रकी जितनी गायिकाएँ थीं, उनके अनुसार उसने अपनी गाविकाओंके नाम रख लिये, जैसे उर्वशी, रम्भा, तिलोत्तमा इत्यादि अड़तालीस हजार श्रेष्ठ सुन्दर युवतियों थीं ॥१-८॥ यत्ता-उस विद्याधरने सोचा कि इन्द्रके जो-जो चिहह वे-वे मेरे भी है, लो मैं भी पृथ्वीमण्डलका इन्द्र हूँ ॥२॥ [२] जो-जो मालिकी सेवा कर रहे थे उसकी भाग्यश्री कम होनेपर, वे सब राजा इन्द्रसे मिल गये, वैसे ही, जैसे दूसरे-दूसरे जल दूसरे समुद्र में मिल जाते हैं। श्रीसम्पन्न होकर भी वे कर नहीं देते । अहंकारी इतने कि आज्ञाका पालन तक नहीं करते । तर किसीने जाकर मालिसे कहा, "भाग्यहीन समझकर, तुमसे लोग आशंका नहीं करते। कोई इन्द्र नामका सहस्रारका पुत्र है, सब उसीको चाकरी कर रहे हैं।" यह सुनकर सुकेशका पुत्र मालि कोपाग्निकी ज्वालासे भड़क उठा।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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