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________________ पउमचरिय पुर उज्जोदन्तिय दीवि जेम । पच्छ अन्धार करन्ति ते ॥८॥ सिद्धि कु-मुणिवर परिहरन्ति । दुगाम्ध रुख मं भमर- पति ॥९॥ ११८ यत्ता यि किक्किन्धों पासु किह । गणिवारिए वाक सरि-परिहलिए (१) कछहंसह कलहंसि विह ॥ १०॥ ] णं मेसरों कोयणाएँ ॥३१॥ णं कर्णयगिरि - चन्दले ॥२॥ । ससि-बोण्डऍ विणु णं महिहरिन्द ॥३ णं पय-सर रवि कन्ति-मुक ॥४॥ कोवग्गि-पकीविउ विजयसीहु ||५|| पसारु दिष्णु किं वन्न राहु ४५ ॥ पाणर-स-परुहों कन्दु खजहाँ ॥ ७ ॥ हारि अमरिस-कुण ॥४॥ [ किन्हों घल्लिय माळ ताएँ । आसण्ण परिद्विय विमल- देह । विच्छाय जाय सयक्ष वि गरिन्छ णं कृन्तवसि परम-गहें चुक | एथन्तर सिरिमाळा-बईतु 'सरे चियाहर-वराहुँ । उद्दाह वहु बरहलु हणहो । शं वयशु सुणेपिणु अन्धएण । "बिनाहर तुम्हें कद्दू पहरण पाव घता अम्हें कइदय कषणु खलु । जाम ण पाडमि सिर-कमलु ॥५॥ [ ५ ] उत्थर पवर-मुख-हि-दीहु ॥१॥ सिरिमाला - कारण दुन्दराहँ || २ || णं सुकइ-कम्व वयणहुँ घरन्ति ॥३॥ दुषि-वरलाव व कु सच ॥४॥ शं पंसुलि-लोयण परिनमन्ति ॥५॥ कक्कादिड पत्तु सुकेसु वाम ॥ ६ ॥ संचयणु सुणेपिणुविजयसोहु । अभि ज्यु विजाहराहें । साइण मि अवरोष्प मिठन्ति । मञ्जन्ति खम्म विदन्ति च । हय गय सुण्णासन संचरन्ति । रणु विजाहर-वाणा जाम ।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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