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________________ ससमो संधि ११० पत्ता-किष्किन्धने देखा कि राज्यकुलका ध्वज हवामें उड़ रहा है, जैसे श्रीमालाका हाथ उसे पुकार रहा हो ।।९।। [२] अपने-अपने स्थानों पर मंच बने हुए थे जो महाकविके काव्य-वचनकी तरह मुगठित ( अच्छी तरह निर्मित ) थे । सोनेके गत्तों और मणियोंसे भूषित उन मंचोंपर सब बैठ गये। जिनमें भ्रमण करते हुए भौरोंकी ध्वनि गँज रही है, सघन आतपत्रोंसे अन्धकार फैल रहा है, सूर्यकान्तकी किरणोंसे जो आलोकित हैं, जो वीणाक शब्दांसे मुखर है, सहयोपर - कर राजा लोग बैठ गये । वामन और नद की तरह कोई अपना अभिनय कर रहे थे। बार-बार अपना शरीर अलकृत करते हुए उतारकर हार धारण करते। कोई सुन्दर अच्छी कान्तिवाली सोनेकी करधनी, यह कहकर कि यह बड़ी है, झूठमूठ फेक देता, कोई आसनपर बैठे-बैठे हँसते और गाते हैं, अंग मोड़ते हैं और हाथ घुमाते हैं ॥५-या वत्ता- सभी वर प्रसाधन किये हुए सामने ऐसे स्थित थे, जैसे 'सिद्धि होगी' इस आशा से सभी समद (प्रसन्न) हो ||२|| [३] तब श्रीमाला हधिनीपर चढ़ गयी मानो बिजली ही महामेघमालासे जा लगी हो। समस्त आभरणों से अलंकृत उसकी देह ऐसी जान पड़ती थी मानो आकाशमें चन्द्रलेखा प्रकाशित हुई हो । एक स्त्रीने राजसमूह उसे इस प्रकार दिखाया, मानो मधुकरी वनश्रीको तरुवर दिखा रही हो । (वह कहती), "हे सुन्दरि, वह कुमार चन्द्रानन हैं, वह युद्ध में दुर्निवार उद्धत है, वह शत्रुओंके लिए प्रलयकाल विजयसिंह है, जो रथनूपुर नगर का श्रेष्ठ स्वामी है। वह सभी नरवरोंको छोड़ती हुई, उसी प्रकार आगे बढ़ती है जैसे सम्यग् दृष्टि दूसरोंके भागमको
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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