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छटो संधि यह सुनकर वानरसमूह बोला, “क्या राजा तुम पुराना वैर भूल गये कि जब तुम जलनाडाप लिए आये थे और महादेवाके कारण तुमने कपिको मारा था। ऋपिके पंचणमोकार मन्त्रके प्रभावसे मैं सुरवर उत्पन्न हुआ ॥२-८।।
पत्ता--तुम्हारे बैरकी याद कर, यहाँ मैं एक होकर भी अनेक भागों में स्थित हूँ | अब तुम युद्धमें शान्त क्यों हो? या तो लड़ो या फिर मेरे पैरोंमें गिरो" ||९||
[१३] यह सुनकर राजा नत हो गया। अमरने भी अपनी अमरगति दिखायी। वह तडित्केझाको हाथ पकड़कर वहाँ ले गया जहाँ 'चार ज्ञानके धारक महामुनि थे। प्रदक्षिणा देकर गुरुमक्ति की और वन्दना करके दोनों सामने बैठ गये । देयका अंग-अंग हर्षित हो उठा। ( वह बोला), "यह जन्म इन्होंने हमें दिखाया, आज भी मेरा यह प्राकृत शरीर देखा जा सकता है।" उसे देखकर तडित्केश भी डर गया मानो हवाके झोंकेसे तरुवर ही काँप उठा हो ? फिर उसने महामुनिसे कहा, "धर्म बताइए, जिससे मैं नरकपथमें भ्रमण न करूं।" यह सुनकर सुन्दर चरित मुनि कहते हैं, "मेरे एक दूसरे परम आचार्य है, बह सब प्रकारकी पीड़ा दूर करनेवाला धर्म बताते हैं, हम शान्ति जिनालय में प्रवेश करें।" परितोषके साथ तीनों चले जैसे भरत, राहुबलि और ऋपभ मिल गये हों ।।१-१०||
घत्ता नरपति उदधिकुमार और मुनीन्द्रने चैत्यगृहमें परमाचार्यको देखा, मानो समवशरणमें परमजिनेन्द्र को धरणेन्द्र देवेन्द्र और नरेन्द्रने देखा हो ॥११॥
[१४] प्रणाम कर उन्होंने परमऋषिसे पूछा, "आदरणीय, धर्मकी दिशाका उपदेश दें।" परमेश्वर, जो मुनिप्रवर त्रिकाल बुद्धि और चार ज्ञानके धारी हैं, कहते हैं, "धर्मसे यान, जपाय (?) और ध्वज होते हैं, धर्मसे मृत्यु, रथ, तुरंग और गज मिलते हैं,