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________________ छट्टो संधि घुसा। इतने में उसकी महादेवीके स्तनके अप्रभागको तत्काल एक वानरने फाड़ डाला। उसने भी तीरोंसे वानरको छेद दिया। कपि तम्वरके मूल में वहाँ गया, जहाँ एफ मुनियर थे ॥१-८|| __ पत्ता-वह वानर णमोकार मन्त्र पानेके फलके कारण स्वर्गमें उदाधिकुमार देव हुआ। अपने जन्मान्तरको याद कर जहाँ तडित्केश था वहाँ यह देव अवतीर्ण हुआ ॥९॥ [११] तडित्केशको देखते ही यह क्रोधसे भर उठा, "मैं इसी हताशके द्वारा मारा गया । आज भी इसके मनमें शल्य है, और जहाँ देखता है, वहीं वानरोंको मार देता है। यह क्षुद्र नीच कितने चन्दर मारेगा, मैं 'मायावी वानर सेना' उत्पन्न फरता हूँ।" यह सोचकर उसने पहाड़के समान बड़े-बड़े वानरोंकी रचना की । लालमुख और लम्त्री पूंछवाले वे वुक्कार और घग्घरके घोर ताल कर रहे थे आदिः ये उपर पड़ रहे थे, जल, थल और नम कहीं भी नहीं समा रहे थे। कुछने बड़ेबड़े पेड़ उखाड़ लिये, कुन्छने महीधर संचालित कर दिये, कुछने हथियार ले लिये और कइयोंने अपनी लम्बी पछे उठा ली ।।१-८॥ __घत्ता-कुछ हाथमें आग लिये हुए थे, दूसरे, दूसरे-दूसरे साधनोंसे युक्त थे। ऐसा जान पड़ता था, मानो कालके रूप ही अनेक भागोंमें आकर स्थित हो ॥९|| [१२] एकने जाकर लंकानरेशको ललकारा, "हे पाप, उसी प्रकार प्रहार कर जिस प्रकार कपिको मारा था ।" यह सुनकर राजा काँप गया कि कहीं वानर भी बोलते हैं ? क्या कहीं वानरोंके भी हथियार होते हैं ? यहाँ कोई मामूली कारण नहीं है ? महाभयसे आक्रान्त और अपना मस्तक झुकाते हुए उसने कपिसे कहा, "आप लोग कौन है ? यह अशान्ति क्यों मचा रखी है ? किस कारण आप तैयार होकर यहाँ स्थित है ?"
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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