SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ महवि ताम सह तक्खपण । लेण वि णामहिं विधु कड् । - णमोकारही फण यि भवन्तरु संभरें वि पउमचरिउ तडिकेसु शिएत्रि विहाय । अजुनि म स समुष्षहद् । केस बस खुट्टु खलु । तो एस भनें वि साहामित्र हूँ । रतमुह पुच्छ-पईहरई । आणत उष्परि धाइय हूँ । अण्णई उम्मूलियन्तस्वरहूँ । अण्णाएँ उम्गामिय-पहरण अहूँ हुयवह हत्थाई रूवइँ काहहाँ केरा हूँ यण सिहर फाक्षिय मडेंण ॥७॥ आज तड जज तरुवर-मूल जड् ॥ ४ ॥ घन्ता अण्णाहं कोकिलकाहिवद्द | संणिसुणे वि णरवइ कम्पियउ । किं कहि मिन्हों पहरणइँ । चिन्तेचि महाभय-वस्थऍन । 'के तुम्हई काहूँ - स्वन्ति किया । उवद्दिकुमारु देउ उप्पण्णउ । विज्जुकेसु जउ त अव [11] ||९|| 'हउँ एण हवायें धाइयउ ||१|| जब पंक्य त कड़वर चहद्द ||२|| उपायमि माया पमय-बलु ॥३॥ गिरिवर-संकासहूँ निम्मिय हूँ ||४|| कार-घोर घग्घर-सरहूँ ॥५॥ जलै थले आयासे ण माय ||६|| अण्णइँ संचालिय- महिहरई ॥७ ॥ अण्णई लंगूल-पहरणं ॥ ८॥३ घत्ता अण्णा पुणु अपनेंहि उप्पाएँ हि । आवे विभियहुँ गाई बहु भाएँ ||९|| [ 9 ] 'सिंह पहरु पाव जिड़ हिट कर ॥1॥ 'किं कहि मि पत्रङ्गमु अम्पियउ' ||२|| आयहँ हुआएँ ० कारणई ||३|| कोला विष पणविय सरथ ऍश ॥४॥ कज्मेण केण सण्णहें वि थिय' ||५||
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy