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महवि ताम सह तक्खपण । लेण वि णामहिं विधु कड् ।
- णमोकारही फण
यि भवन्तरु संभरें वि
पउमचरिउ
तडिकेसु शिएत्रि विहाय । अजुनि म स समुष्षहद् । केस बस खुट्टु खलु । तो एस भनें वि साहामित्र हूँ । रतमुह पुच्छ-पईहरई । आणत उष्परि धाइय हूँ । अण्णई उम्मूलियन्तस्वरहूँ । अण्णाएँ उम्गामिय-पहरण
अहूँ हुयवह हत्थाई रूवइँ काहहाँ केरा हूँ
यण सिहर फाक्षिय मडेंण ॥७॥ आज तड जज तरुवर-मूल जड् ॥ ४ ॥
घन्ता
अण्णाहं कोकिलकाहिवद्द | संणिसुणे वि णरवइ कम्पियउ । किं कहि मिन्हों पहरणइँ । चिन्तेचि महाभय-वस्थऍन । 'के तुम्हई काहूँ - स्वन्ति किया ।
उवद्दिकुमारु देउ उप्पण्णउ । विज्जुकेसु जउ त अव
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'हउँ एण हवायें धाइयउ ||१|| जब पंक्य त कड़वर चहद्द ||२|| उपायमि माया पमय-बलु ॥३॥ गिरिवर-संकासहूँ निम्मिय हूँ ||४|| कार-घोर घग्घर-सरहूँ ॥५॥ जलै थले आयासे ण माय ||६|| अण्णइँ संचालिय- महिहरई ॥७ ॥ अण्णई लंगूल-पहरणं ॥ ८॥३
घत्ता
अण्णा पुणु अपनेंहि उप्पाएँ हि । आवे विभियहुँ गाई बहु भाएँ ||९||
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'सिंह पहरु पाव जिड़ हिट कर ॥1॥ 'किं कहि मि पत्रङ्गमु अम्पियउ' ||२|| आयहँ हुआएँ ० कारणई ||३|| कोला विष पणविय सरथ ऍश ॥४॥ कज्मेण केण सण्णहें वि थिय' ||५||