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________________ छटो संधि १०० गया। जिस प्रकार यजण्ट, इन्द्रायुध, इन्द्रमूर्ति, मेरु, समन्दर, पधनगति और रविप्रभु, इस प्रकार आठ सुखद सिंहासन वीत गये ।।१-८॥ धत्ता-नीचा अमरप्रम, वासुपूज्य और श्रेयान्स जिनेन्द्रके बीच में ऐसे ही प्रतिष्टित था, जैसे सूर्य और चन्द्रमा, दोनों के मध्य पूणिमाका पूर्वाह ||५|| [९] लंका नरेशाकी कन्यासे विवाह करते समय उसके आँगनमें क्रिसीने बन्दरोंके चित्र बना दिय | लम्बी पूंछ और लाल-लाल मुंहवाले से छलांग भरकर सामने दीढ़ते हुए। वानरोंके उस चित्रसमूहका देखकर मारे हरके, राजवधू मच्छित हो गयी। इससे राजा क्रुद्ध हो गया। ( उसने कहा ), "उसे मार डालो जिसने ये बन्दर लिख"। तब मन्त्रियोंने उसे शान्त किया कि वानरममहका अतिक्रमण आजतक किसी ने नहीं किया। इन्हींके प्रसादसे यह राज्यश्री, तुम्हारी आज्ञाकारी स्त्रीके समान है। इन्हींक प्रसादसे तुम युद्ध में अजेय हो। और इन्हीं के कारण वानरवंश दुनियामें प्रसिद्ध हुआ। श्रीकण्ठके समयसे लेकर ये सैकड़ों धानर तुम्हारे कुलदेवता रहे हैं ॥१-८॥ ___घत्ता--यह सुनकर सन्तुष्ट मन अमरप्रभने उनसे क्षमा माँगी और प्रणाम किया, तथा अपने पवित्र कुलके चिहके रूपमें उन्हें पताकाओं, स्त्रज और छत्रोंपर चित्रित करवाया ॥९॥ [१०] उसीसे यह बानरबंश प्रसिद्ध हुआ । और वह दोनों श्रेणियोंको जीतकर रहने लगा। उसका पुत्र कपिध्वज उत्पन्न हुआ, कपिध्वजका प्रबर भुज प्रतिबल, फिर प्रतिबलका नयनानन्द, फिर विशालगुण खेचरानन्द, फिर गिरिनन्दन, फिर उदधिरथ, उसका परममित्र, शत्रुपक्षका क्षय करनेवाला, तडिस्कदा लंकानरेता था। विद्याधरोंका स्वामी, और आकाशगामी वह एक उपवनमें गया और स्नान करनेकी बावड़ीमें
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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